21 दिसंबर 2016

सौ में सौ बेईमान, फिर भी मैं महान!!

नोटबंदी के बाद पता नहीं क्यों अचानक कामरेड छोटन सिंह गांव के चौक चौराहे पे भाषण देते घूम रहे है "एक मच्छर, आदमी को हिजड़ा बना देता है, सौ में सौ बेईमान फिर भी मैं महान!! मेरा देश महान!!" अब इन बातों का अर्थ आपको समझ नहीं आती तो आप टीवी चैनल खोलकर देखिये, या संसद का शीतकालीन सत्र देखिये, या सोशल मीडिया पे आईये, मेरे जैसे इत्ते ईमानदार मिलेंगे की आपको सौ के आगे की गिनती का अविष्कार करना होगा।

खदेरन चाचा पूछ ही लिए "आयं हो सौ में सौ बेईमान तो ईमानदार के है?" सौ में सौ बेईमान, मने की जब हम इसे लिख रहे होते है या आप पढ़ रहे होते है तब हमें पता है कि हमने कहाँ बेईमानी की है पर उपदेश पेलना है,सो देखिये, पेल रहे हैं।

कहते है कि अबतक जितने नोटों ने जन्म लिया था लगभग सबके सब ने बेचारे बैंक पहुँच कर सरेंडर कर दिए है फिर भी बाहर अभी बहुत से नोट गिरफ्तार हो रहे है, क्या समझे, नहीं समझे न! समझियेगा कैसे, यही तो खेल है। जा के पूछिये गांव के पार्लियामेंट में भाषण देते रामखेलाबन काका से, कहेंगे "दुर मरदे, ई बैंकबा में सब नकली रुपैया जमा हो गेलई औ असली अभी बाहरे है।, नोटबंदी गरीब ले हल, लाइन लगा देलक! बड़का डकैत तो सब नया नोट ट्रक से ले जाके घर में रख लेलक।

नोटबंदी और कालाधन का आध्यात्मिक पहलु भी है। अध्यात्म में भक्त और भगवान् होते है, बाकि संसार तो माया है! माया मने वही बहनजी, दीदी, दादा, नेताजी, युवराज अदि इत्यादि..। इनके पेट में मरोड़ के बाद आम आदमी का करेजा चौड़ा हुआ था पर युवराज और प्रधान जी में मुलाकात के बाद राजनीतिक पार्टी को मिली हैवी डिकॉउंट ने सब पोल खोल दिया। खेलाबन काका कहते है " पब्लिक है सब जानती है, अब जाके भक्त और गैर भक्त सभी को समझ आया कि सदन क्यों नहीं चलाया गया या चलने नहीं दिया गया!"

आध्यात्मिक पक्ष समझिये, दो चक्की के बीच गरीब आदमी पीस रहा है। प्रधान जी की सिंहगर्जन है कि नोटबंदी गरीब की भलाई में है। विपक्ष एक जुट होकर हुआ हुआ करते हुए नोटबंदी को गरीब विरोधी बता रहे है। अब कबीर दास ने तो पहले ही कह दिया था "दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।" बाकई बैंक की लाइन में लगे गरीब आदमी से पूछिए तो कहेंगे "कष्ट है पर देश के लिए सह लेंगे।" बिलकुल उसी तरह जैसे बच्चे को जन्म देने से पूर्व महिला दर्द सहती है!! लो जी, आपको कुछ साबुत नहीं मिलेगा। सब पिस-पास के एक कर दिया गया है। होना भी एक ही था। आखिर जब भी कोई चीज बहुत बारीकी से पिस दी जाती है तो सब एक सा हो जाता है।

नोटबंदी को भी बहुत बारीक़ से पीस दिया गया है। आम आदमी के पास ऐसी चलनी नहीं की गेहूं और घास-फूस के पिसे हुए आटे से अलग कर सके! सो मजे लीजिये, बिहारी लिट्टी का। गर्मी बहुत है भाय। नोटबंदी की चटनी के साथ टेस्टी लगेगा।
बाकि कामरेड छोटन सिंह को बिना श्रोता के गाने दीजिये:-

चुनाव में  करतो नेता करोड़ हे खर्च,
नोट के बदले वोट, जनता के हे मर्ज,
पार्टी के पैसा के हिसाब देबे में हे दर्द,
जनता की अंटी से पैसा खींचना हे फर्ज,

कालाधन वाला ही सब अब बनल है राजा,
जनता बाजाहो कालाधन औ नोटबंदी वाला बाजा!!




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