30 नवंबर 2014

भेंड़ियाधसान..


जॉन्सन बेबी के युग में दो शब्द इस बच्चे के लिए आपके पास हो तो कहे जो चिलचिलाती धुप में , धान के खेत में,  धान के पातन पे बैठा है । यह अफ्रीका का नहीं , भारत का ही बेटा है ..जिस धान पे यह बैठा है इतना धान भी मालिक इसे लेने नहीं देता और माँ कहती है की -"बुतरू के दूध पिए ले दे दहो .."

जब मैं फोटो लेने लगा तो इसकी माँ बोली- "काहे ले फोटुआ खींचो हो, कुछ मिल्तै की..."

क्या जबाब देता..इस सोशल मिडिया में  इन गंभीर मुद्दों पे सन्नाटा सा छा जाता है, शायद हम शर्मा जाते है...चलो शर्म तो बाकि है !













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भेंड़ियाधसान
भागमभाग
आपाधापी
गलकट्टी
से बहुत कुछ
पा लिया हमने....

बस गंवा दी
अपनी संवेदनाऐं
अपना शर्म
अपनी हया
अपने आंख का पानी
अपनी आदमियत...

28 नवंबर 2014

गांव से भी गायब हो गई गोरैया, खो रही मैना...(गांव का हाल-चाल)

(गांव-शेरपर, पो0-बरबीघा, जिला-शेखपुरा, बिहार)
बहुत दिनों के बाद इतने सारे ‘‘मैना’’ को देखा तो प्रसन्नता हुई! अब गांव में भी पंछियों की संख्या में भारी कमी आई है। कुछ पंछी तो लगभग नजर ही नहीं आते। ऐसे में मैना को इतनी संख्या में देखने से खुशी होती ही हैं।
एक समय था जब गांव में गोरैयों को चुगने के लिए धान की नई फसल को घर में टांग दिया जाता था और इसे फोंकने के लिए गोरैयों का झुंड जमा हो जाती थी पर पिछले कई सालों से गोरैया नजर नहीं आती है। मैंने इस साल भी धान की बाली को लाकर टांग दिया पर एक भी गोरैया उसे फोंकने नहीं आई। 

कुछ साल पहले तक मकई के खेत को तोतों की झुंड से बचाने के लिए दादा जी मचान बना कर उसकी रखबाली करते थे और हमें भी मचान पर बैठा दिया जाता था और टीन का कनस्तर बजा कर हम तोंता उड़ाते थे या फिर आदमी का पुतला बना कर खड़ा कर दिया जाता था जिससे पंछी हड़क जाऐं पर अब तोंता भी गांव में एक आध ही नजर आते है। इसी प्रकार बुलबुल की चहक भी गायब हो गई और दशहरा में जतरा के दिन नीलकंढ को उड़ते हुए देखने की परंपरा का अब निर्वहन कैसे होगा पता नहीं? गांव में नीलकंढ नजर ही नहीं आते। 

और यदि मैं अपना बचपन याद करू तो गिद्ध को पकड़ कर जहाज बनाने की दोस्तों के साथ योजना कई दिनों तक बनाई थी पर अब इस योजना का क्या होगा? गिद्ध तो कहीं नजर हीं नहीं आते। वहीं चील, बाजी भी अब दिखाई नहीं देते और कबूतरों का झूंड भी गायब हो गया। 

 कबूतर की ही प्रजाति की एक पंछी थी जिसको हमलोग पंड़की कहते थे, वह भी अब गायब हो गई है और मैना तथा कैआ भी बहुत कम पाये जाते है।
एक समय था जब पंछियों से छत पर सूखने वाले अनाज की रक्षा के लिए मां हमे छत पर बैठा देती थी और हम धात धात कर पंछी उड़ाते थे पर अब ऐसा नहीं होता, एक भी पंछी अनाज चुगने नहीं आती। ऐसा क्यों और कैसे हुआ इसपर शोध किए ही जा रहे है पर इसका प्रमुख कारण खेती में कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और शायद मोबाइल टावर से निकलने वाला विकिरण ही है और इन चीजों पर रोक तो लगाया नहीं जा सकता सो पंछियों को बिलुप्त होने से बचाया भी नहीं जा सकता....और वे दिन जल्द ही आएगा जब हमारे बच्चे तस्वीरों को देखकर कहेगें एक थी गोरैया, एक थी मैना.. है न....





22 नवंबर 2014

कनकट्टा (मगही व्यंग्य रचना ) दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित

दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित 
(पटना 26/11/14)
जहिना से सोशल मीडिया के जमाना अइलो हें तहिना से भगत और भगवान के मतलबे बदल गेलो हें। अब त सब अप्पन अप्पन भगवान और अप्पन अप्पन भगत गढ़ ले हो। अब त जमाना चैटिंग और डेटिंग के है सेकार से ही भगवानों से सीधे चैटिंग हो जाहो और भगत सब फुलके कुप्पा हो गेलो।



अब सोशल मीडिया के बात करभो त हियां तो चिटिंग करे वला के बड़ाय लुटो हल अ इमान से रहे वला के कोइ नै पूछछो हय। अब कि कहियो, विश्वास नै हो त एगो सुन्दर, सुशील और हाॅट कन्या के नकली प्रोफाइल बना के सोशल मीडिया पर डाल दहो, फेर देखहो...। दस साल सोशल मीडिया के जंगल में जेतना तपस्या कलहो हल सब तुरंतें टूट जइतो। कइगो संत, महात्मा ई मेनका के मोह पास में फंस के अपन्न अपन्न तपस्या भंग कर देताकृताबड़तोड़ फ्रेंड रिक्वेस्ट औ काॅमेंट के भरमार हो जइतो।


अब नामी गिरानी कवि महाराज सब के कविता पर नै एगो लाइक मिलतो औ नै ए गो काॅमेंट अ उहे कविता के इ सुकन्या के प्रोफाइल से डाल के देखहो..त तोड़ा अपप्न मरदाना होबे पर लाज लगतो....। लगतो कहे नै, देखभो कि कैसे सब मर्दाना जिलप्पक नियर एक से एक लच्छेदार बात काॅमेंट लिखे लगतो....।


अब ऐकरे से सोंचहो! जमाना तो कट-पेस्ट के है से हे से कब तोरे लिखल रचना कब तोरे पास दुश्मन, दोस्त के रचना बनके तोरे पास आ जाइतो कहल नै जाहो।


कमाले है कि नै है! औ ऐसने चैंटिंग-चिटिंग के जमाना में भगत सब भगवान के जयकार ऐसे कर रहला है जैसे ग्यारहवां अवतार उहे हका...। भोर से सांझ तक जन्ने देखहो ओन्ने उनकरे जयकारा हो रहलो है। एकदम भेंडि़याधसान हो गेलो है। तीर्थयात्री नियर सब जय जय कर रहल है। वैसने, जैसन कान कटैला पर भगवान मिलतो के फेरा में समूचा गांव कान कटा लेलक......अब सब कनकट्टा हो गेल हैं अब के केकार कनकट्टा कहतै। जय जय जय जय जय... जयकार करहो..... भुखल पेट कत्ते दिन भजन होतई.. देखहो...।

16 नवंबर 2014

उसने तो आत्महत्या कर ली, तुम कब करोगे....

नाम  में क्या रखा  है ...। उससे मेरा बहुत परिचय नहीं था पर वह दिन भर में जितनी बार भी मिलता बहुत विनम्रता और शिष्टता से झुक कर प्रणाम जरुर करता ।  कभी  सिगरेट पीता हुआ दिख जाता तो सिगरेट झट से छुपा लेता...कभी  कहीं शराब पीता दिख  जाता तो सबकुछ छुपा लेता.....उसने भी देखा की मैंने देख लिया पर  उसका लिहाज करना मुझे अच्छा लगता था...

        विवश हो कर मुझे पता करना पड़ा की वह कौन है , आश्चर्य रूप से पता चला की वह  एक खतरनाक अपराधी है ।  उसके  अपराध की कहानी सुन कर मैं सहम सा गया । पहले प्रणाम के जबाब में मैं उसे भी प्रणाम  करता था, जाने  क्यूँ ? पर मेरी आदत है की जब भी कोई भी मुझे प्रणाम करता मैं भी उसे प्रणाम ही करता हूँ । खैर, जानकारी  मिलने के बाद मैंने उसे जबाब में प्रणाम करना छोड़ दिया पर उसका शालीन, सभ्य और  विनम्र  सा चेहरा जहाँ भी मिला, मुझे सालो प्रणाम करता रहा...कल अचानक  खबर मिली की उसकी मौत हो गयी...सदमा  सा लगा..किसी  की भी मौत से खुश  तो कतई नहीं हुआ जा सकता..सो...। 

पता  चला की उसके पिता का अपराधियों ने इसलिए अपहरण कर लिया की उसने उसका बलोरो गाड़ी लूट ली थी और पता चलने पर उससे मांगने पर उल्टा गली गलौज और धमकी देने लगा । परिणाम उसको खोजने आया और नहीं मिलने पर उसके पिता का अपहरण कर लिया...। 

कल उसके मौत की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी । वह एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार का एकलौत पुत्र था..वह अपने दो  बच्चे की परवरिश  ठीक से हो इसके लिए शहर में रहकर उसे प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ता था । स्थानीय स्तर कोई उसकी शिकायत नहीं करते ...सबकी नजर में वह सादगी से भरा हुआ युवक था...पर आज वह इस दुनिया में नहीं है...कोई कहता है की पिता के अपहरण के बाद परिवारों की पड़तारना से शर्मिंदा होकर उसने जहर खा कर आत्महत्या  कर ली...! कोई  कहता है उन्ही अपराधियों ने उसकी हत्या कर दी...जो  हो पर आज वह इस दुनिया  से विदा हो गया...आज  उसके संगी-साथी जो रोज उसके साथ शराब पीते थे और अपराध करते थे, आज उदास है..उनको  झटका लगा होगा...कई  को जनता हूँ और वो फेसबुक पे भी सक्रीय है..पर  मुझे उनसे डर भी लगता है फिर भी.... मैं उनसे कहना चाहता हूँ की एक खूंखार डाकू जब बाल्मीकि बन रामायण लिख सकते है तो वो क्यूँ नहीं वापस आ सकता है...मनुष्य के अन्दर अपार संभावनाएं है..अंगुलिमाल  डाकू से बुद्ध ने  कहा था "मैं तो रुक गया, तुम  कब रुकोगे.." मैं  बुद्ध तो नहीं जो कोई मेरी बात मान ले पर फिर भी कहूँगा की साथी की मौत से सबक लो और अपने परिवार के  खातिर अब  लौट जाओ, अपराध  की दुनिया का  अंतिम सत्य तुमने देख लिया...। 

उफ़!  लोगों  की बात  पे आज  भी भरोसा नहीं होता की वह एक अपराधी था, मुझे  तो अभी भी यह भरोसा नहीं होता की वह मर गया...उसका  हँसता, मुस्कुराता, शालीन, विनम्र, सभ्य और  संस्कारित चेहरा उस  गली से गुजरते हुए आज भी वहीं खड़ा  मिलता है ..प्रणाम करते हुए...

वह जो था, जैसा  था पर  यदि उसने आत्महत्या  की है तो मैं  कह सकता हूँ की उसके  अन्दर अभी भी आदमी जिन्दा था..जिसने  उसे जीने नहीं दिया...पर  उसके दो मासूम बच्चों का भविष्य  अब क्या...सोंच रहा हूँ...

06 नवंबर 2014

बिना बुर्का की मुस्लिम महिलाएं प्रगति की निशानी


ताजिया पहलाम में दो बातों की तरफ मेरा ध्यान गया । एक मुस्लिम समाज के उत्थान तो दूसरा पतन का परिचायक है । पहला यह की ताजिया पहलाम में बड़ी संख्या महिलाएं शामिल थी वो भी वगैर बुर्का के । यह एक बड़ा बदलाव है । बुर्का महिलाओं के मानवाधिकार का हनन है औए इस बदलाव को देख अच्छा लगा ।महिलाओं बुर्का को मैं दमन की निशानी मानता हूँ जो पुरुषवादी समाज धर्म की आड़ में जबरन महिलाओं पे थोप देता है । आधुनिक युग में महिलाओं की स्वतंत्रता ही नयी पीढ़ी को नया रास्ता दिखाएगी , उसे नयी उर्जा और नए मंजिल का पता बताएगी । जिस समाज में भी महिलाओं का दमन है वह अपना विनाश ही करता है ।

इसी तरह पतन के रूप में देखने को मिला की जिस इस्लाम ने शराब को हराम बताया उसी में ताजिया के दौरान कई युवा शराब के नशे में झूम रहे है...
हिन्दू समुदाय के पर्व होली, दशहरा का नाश शराब ने कर दिया । होली में अब बिना शराब पिए लोग सड़क पे नहीं निकलते क्यूँकि सभी नशे में धुत्त होते है और इस तरह हमारी सभ्यता और संस्कृति का नाश शराब कर रही है । आज मुस्लिम समाज में भी यही दिखा ।

02 नवंबर 2014

अभिनेत्री ललिया उर्फ़ रतन राजपूत पहुंची ननिहाल


अभिनेत्री ललिया उर्फ़ रतन राजपूत बरबीघा स्थित विश्व में बिष्णु की सबसे ऊँची प्रतिमा दर्शन करने पहुंची ।  सामस गांव में दर्शन के बाद रतन ने इसे बिहार की पहचान बताई और इसके अधूरे विकाश पे गहरी चिंता जताई ।  ललिया निर्माणाधीन मंदिर जाने के रास्ते में भारी परेशानी उठायी ।
रतन बगल के भैरोबिघा गांव अपने ननिहाल आई हुई थी ।
बातचीत में ललिया ने साफ कहा की बिहार की स्टोरी पे फिल्म तो बनती है और बिहारी बोली का डायलौग भी बोला जाता है पर बिहार आकर फिल्म निर्माता नहीं बनाना चाहते है । यह दुखद है की फिल्म निर्माता आज भी बिहार आने से डरते है । ननिहाल में ललिया जमीन पे बैठ कर ही ग्रामीणों से बात की। ललिया ने साफ कहा की लड़कियों को स्वाबलंबी होना ही उसका भविष्य  संबरेगा..।