20 दिसंबर 2011

जनलोक पाल भगाओ संधर्ष समिति।


     ज मंतर मंतर मुक्ताकाश मंच में जनलोक पाल भगाओ संधर्ष समिति की बैठक का आयोजन किया गया। बैठक की अध्यक्षता जाने माने  ढोलक डुग्गी राजा ने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डुग्गी राजा ने कहा - मित्रों जिस तरह से इस देश के सर्वोच्च सत्ता  (मैडम) को चुनौती देने का प्रयास किया जा रहा है वह इस देश ही नहीं पूरी दुनिया के नेताओं के लिए खतरनाक है। आज इस बैठक का आयोजन मैडम एवं चिर युवा सह हाइजिनिक दलित प्रेमी युवराज के आदेश पर किया गया है। हमारी सबसे बड़ी चिंता इस विषय को लेकर है कि जिस देशवासियों ने हम जैसे  के भरोस  देश (दूध) की रखवाली का भार छोड़ रखा है उस पर से हमारा अधिकार छिन्ने का प्रयास एक बुढ़ा आदमी कर रहा है। साथियों बंाझ क्या जाने प्रसव पीड़ा का हाल उन्हें क्या पता कि कैसे कैसे तिकड़म और कितने काला धन को खर्च कर हम नोट को वोट में बदलते है और तब जाकर हमे यह अधिकार मिलता है और अब इसपर ही खतरा मंडराने लगा है इसलिए हमें एक जुट होकर इसका विरोध करना चाहिए। वहीं बैठक में अपने विचार व्यक्त करते हुए अधिक वक्ता टिम्पल जी ने कहा कि इस देश को इस जैसे बुढे आदमी से बचाना होगा और इसके लिए जरूरी है कि जनलोक पाल भगाओं संधर्ष समिति के बैनर तले हम लोग एक जुट होकर आंदोलनकारियों पर हमला करें और करायें। हलांकि कई हमले मैंने करा कर देख लिया पर मंुह की खानी पड़ी और जब हमलोगों ने बुढें की फैजी को केश मे फंसाने की कोशीश की तब भी कामयाबी नहीं मिली अतः अब हार कर इस बैठक में ही रणनीति तय कर हमला करना होगा। साथियों हमने मैडम के इशारे पर सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगाने का प्रयास किया पर सब मिल कर चिल्लाने लगे। भला बताई, यह भी कोई बात हुई, सर हमार और धर कुत्ते का। वहीं बैठक में बोलते हुए पी चिंता हरण ने कहा कि मित्रों आज के समय जब हमारे प्रमुख फंड मैनेजरों को तिहाड़ की हवा खिला दी गई तब अब मेरे उपर भी विरोधी लग गए है। भला बताई 2 जी हो या 3 जी, जब तक फंड की व्यवस्था नहीं होगी तब तक हमलोग कैसे बार बार सिंहासन पर बैठ सकेगें।
इसी तरह के विचारो के साथ अन्त में बैठक में निर्णय लिया गया कि हर हाल में जनलोक पाल को लटकानों के लिए संधर्ष को तेज करना है वरना हम सभी लोगों को इतिहास कालीदास के रूप में जानेगा। इतनी मेहनत और मशक्त से यहां तक पहूंचते है और जब गंगा ही नहीं बहेगी तो  भला हाथ कैसे धोबेगें। बैठक में एक बाबू साहेब टाइप ने भी खड़ा होकर समिति के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह सब वही लोग करबा रहें है जिन्हें मौका नहीं मिला कमाने का। भला इसमें भ्रष्टाचार कहां कि कुछ पैसा लेकर किसी का काम समय पर कर दिया जाय। अजि महाराज जब नगद नारायण ही नहीं मिलेगा तब भला कौन बुरबक है जो ओवर टाइम करके काम का निवटारा करेगा।

कार्टून= साभार गुगल देवता

29 नवंबर 2011

प्रेम की अनूठी कहानी-मिनाक्षी ने विकलांग युवक को चुना जीवन साथी ।


कहा जाता है कि शाश्वत प्रेम किसी भी कारण का मोहताज नहीं होती और और इसी शाश्वत प्रेम को सार्थक कर रही है मीनाक्षी कुमारी। पेशे से निजी विद्यालय में शिक्षिका मीनाक्षी ने गांव समाज और घर परिवार से विरोध कर एक विकलांग युवक को अपना जीवन साथी चुन लिया।
शेखपुरा के शेखोपुरसराय प्रखण्ड के पन्हेसा निवासी मीनाक्षी एवं नीमी गांव निवासी राजकुमार ने कोर्ट मैरेज कर लिया। इस मामले में मीनाक्षी के घर वालांे ने काफी विरोध किया पर जब दो दिलों ने एक होने का फैसला कर लिया तो फिर किसी के विरोध से वह कहां रूकता है।
राजकुमार दोनों पैर से पूरी तरह से विकलांग है पर प्रतिभा से सम्पन्न भी। राजकुमार तीन चक्कों की मोटरसाईकिल की सवारी करता है और इलेक्ट्रोनिक समानों को बनाने की जानकारी भी रखता है जिसकी वजह से उसने कभी भी अपनी विकलंांगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और फिर मिनाक्षी ने उसे जीवन साथी चुन लिया।
मीनाक्षी एक गांव की रहने वाली युवती है और उसका यह साहस महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।

24 नवंबर 2011

नीतीश कुमार और उनकी सेवा यात्रा का सच।



कल नीतीश कुमार शेखपुरा जिले की यात्रा पर आये हुए थे और उनकी सेवा यात्रा को नजदीक से जानने समझने का मौका मिला। सेवा यात्रा के क्रम में नीतीश कुमार बरबीघा के कुटौत गांव आये। कुटौत मध्य विद्यालय का निरिक्षण किया पर सब प्रायोजित था। स्कूल में जब वे प्रायोजित लोगों से बतिया रहे थे तभी उसी विद्यालय में जाकर हमलोगों
शिक्षिका से बात की जिसने बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री का नाम जवाहरलाल नेहरू बताया। वहीं किसी ने नीतीश कुमार का नाम  मुख्यमंत्री के रूप मंे नहीं बताया। विद्यालय में जितने लोग इस उम्मीद मंे आये थे कि वे मुख्यमंत्री से मिलके अपनी फरीयाद करेगें सबको पदाधिकारियों की बड़ी फैज ने बाहर ही रोक लिया या फिर किसी तरह से नाम बगैर नोट कर समस्या दूर करने का आश्वासन दिया।

जिस गांव का दौरा नीतीश कुमार कर रहे थे वहां गंदगी का अंबार था और बजबजाती नालियों से होकर नीतीश कुमार गुजरे। गांव की सफाई और स्वच्छता का पोल खुल गई। वहीं दलित प्रेम का स्वांग भी सामने आया और गार्डो से घिरे  नीतीश कुमार से मिलने को बेचैन दलित महिलाओं को रोक दिया गया और फिर जब वे सब इसका विरोध करते हुए नीतीश कुमार के काफीले के आगे आकर अपनी फरीयाद करना चाही तो उन्हें घकेल कर भगा दिया गया।


वहीं बरबीघा की पहचान जहां बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह से है वहीं नीतीश कुमार के माल्यापर्ण किये जाने को लेकर उनकी प्रतिमा का साफ कियाा गया पर नीतीश कुमार वहां से गुजर गए और माल्यापर्ण नहीं किया। इस घटना से नाराजा होकर सांसद ललन सिंह ने आकर प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया।

वहीं शेखपुरा में दिनदहाड़े हुई हत्या  के हत्यारे को पकडे नहीं जाने से नाराज लोगों ने शेखपुरा सर्किट हाउस में मिलने आए लोगों सेसीएम नहीं मिले और नाराज लोगों ने जब हंगामा किया तो पुलिस ने लाठियां चटकाई। इससे नाराज लोगों ने नगर मे जमकर हंगामा किया और कई जगह आग जनी की।

नीतीश कुमार जब यह कहते है कि इस तरह की यात्रा का मतलब जनता से जुड़ना है तो मुझे भी लगता था कि यह एक सराहनीय कदम है पर जब आंखों से देखा तो सच कुछ और ही सामने आया।

31 अक्तूबर 2011

रामदेव जी महाराज का सत्ता-साष्टांग आसन। -(चुटकी)


कार्टून-कट पेस्ट कला का प्रयोग कर बिगाड़ा है,
 किन्हीं को आपत्ति हो तो कृपा कर दर्ज कराने का कष्ट न करें..।


बाबा रामदेव जी महाराज की जय हो। महाराज जी ने एक नया आसन खोज लिया है। सत्ता-साष्टांग आसन। इस आसन की खुबियां दिग्गी राजा बता रहे है, आजकल। अनुलोम बिलोम करते-कराते बाबा ने सरकार को कपालभाती कराने कि क्या ठानी बाजी ही पलट गई। यूं बोलना और बात है पर रामलीला मैदान में आसन क्या जमाया सरकार ने पहले लठ-आसन का सहारा लेकर बाबा से हिज....सन करा दिया और फिर आईटी और सीबीआई जैसे प्रबल प्रतापी ब्रहम्आस्त्र का सहारा लेकर करोड़ों की सम्पत्ति क्या खोदनी शुरू की बाबा की हवा ही निकलनी बंद हो गई। रही सही कसर बालकृष्ण जी जड़-बुट्टी महाराज की गरदन धर कर सरकार ने बाबा के प्राण, सुगबा को धर लिया। अजी महाराज, आजकल सौ, पच्चास रूपये के लिए भाई भाई से दगा कर रहा है, यहां तो करोड़ों की बात है, तब फिर बाबा की जुबान पर दिग्गी बिराजमान होकर हंफिया रहे हैं तो इसमें आपको बुरा क्यों लगता है। अपने इतने बड़े इंपायार को बचाने के लिए अन्ना को दिग्गी-वचन सुनाते बाबा पर आप काहे गरमाते है।
आपको तो पता ही है बाबा ने कैसे कैसे इतनी दौलत बनाई है। नहीं पता तो बाबा के आश्रम में जाकर देख लिजिए। नहीं जा सकते तो जो गए है उनसे पूछ लिजिए। जड़ी बुटी को फांक, कितने के प्राण पखेरू उड़ गए। कई लोग आज भी कददू के जूस के चक्कर अस्पताल में है? 
मैं तो कहता हूं आप तो कुछ सिखिए। मैं तो ठहरा जाहिल जट, बीबी से लेकर दोस्त यार तक गरियाता है- बड़का पत्रकार है। क्या मिलता है यह सब करके? कभी अखबार गंदा करते हो कभी ब्लौग स्लौग पर बकबक करते हो? मिलता क्या है? मेरे पास तो इसका जबाब नहीं है पर आप तो समझदार दिखते है, जाइए बाबा के शिविर में और चढ़ावा चढ़ा कर कुछ सिखिए कि कैसे सड़कछाप से अरबछाप बना जाता है...जय बाबा की, जय अरबकमाई टिप्स की..।

19 अक्तूबर 2011

टीम अन्ना पर हमला राजनीति की शतरंजी चाल।


यह तो होना ही था। केजरीबाल पर हमला एक राजनीतिक साजिश है। अन्ना जो कर रहे हैं उससे राजनीतिक के चतुर सुजान के कलेजों पर सांप लोट रहा है। राजनीति कोई हंसी-खेल नहीं होती, सालों-साल तप-तपा कर, अपने-पराये सबके साथ झूठ सच कर-करा, कोई राजनीति में जगह बना पाता है और अन्ना हजारे और उनकी टीम एक झटके में उनके सारे किये-कराये पर पानी फेर रहे हैं।

अन्ना के अभ्युदय के पहले इस देश में एक भी सर्व-स्वीकार देश का नेता नहीं था। वहीं अटल जी के बाद यह दौर थम गया था। सोनीया गांधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी मजबुरन छोड़ कर देश की नेता बनने का प्रयास किया और उनके ऐसा करने पर कांग्रेसियांे की नाटक-नौटंकी और बाद के प्रहसनों पर देश ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। फिर अन्ना नामक एक गांधी टापी धारी ने देश को आवाज दी और सालों से नकारा, निकम्मा, बेकार, काहिल सहित कई संबोधनों को झेलती युवा पीढ़ी और आम आदमी उनके साथ उठ खड़ा हुआ। सालों से सत्ता और राजनीति की मलाई खाते और खाने की आस लगाए राजनेताओं को यह नागवार गुजरी और अन्दर ही अन्दर सभी ने अन्ना और उनके टीम को राजनीति का सबक सीखाने की ठान ली। अन्ना के आंदोलन के बाद राजनेताओं के द्वारा कई तरह की साजिश की गई जिसमें लालू यादव को स्टेंडिंग कमिटि का सदस्य बनाना और उनका यह कहना की अन्ना कमिटि मंे आते और हमसे बात करते हम समाधान निकालते, शरद यादव का यह कि डब्बा को बंद कराईये और सबकी आस बने राहुल का संसद में तोंता रटंत शामिल है।

यहां पर मैं अन्ना और उनकी टीम को हिसार के चुनाव में कांग्रेस का विरोध करने को भी वाजिब मानता हूं। वह इसलिए कि कांग्रेस के कई दिग्गी टाइप नेताओं ने अन्ना को राजनीति में उतर कर हाथ आजमाने की चुनौती दी थी। सो उतर कर दिखा दिया।

नेताओं के जनसरोकार से दूर हट जाने का मलाल सबको है और सभी पार्टियां चोर चोर मौसेर भाई की तरह है। संसद में मंहगाई के मुददे पर भाजपा का कांग्रेस के साथ जाना और वोटिंग में सपा, बसपा और राजद सहित तमाम दलों को कांग्रेस से हाथ मिलना, सब कुछ पब्लिक देखती समझती है। ये पब्लिक है सब जानती है। वह चाहे छद्म सेकुल्रिज्म हो या छद्म कॉम्युनलिज्म। 
हां प्रशांत भुषण के मुद्दे पर कईयों को ऐजराज हो सकता है और होना भी चाहिए पर उनके साथ जो हुआ वह भी गलत है। आखिर देश के उस हिस्से की बात हो रही है जिसके लिए कितने ही जवान शहीद हो गए। वहां के संदर्भ मंे एक बात ही कहना चाहूंगा की वहां के मूल निवासी कश्मीरी पंडित को वहां का नागरीक घोषित कर जो करबना हो करबा लो। और अन्ना ने इस मुददे पर अपना रूख भी साफ कर दिया तो फिर उनके टीम के साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
यह पोल्टीक्स है। कांग्रेस हर तरह के हथकंडे अपना का थक चुकी है। वह आर एस एस का साथी से लेकर अन्ना को सेना का भगोड़ा तक साबित करने की कोशिश करके हार चुकी है।
अब कांग्रेस और अन्य पार्टियां भी सबसे पहले अन्ना और उनकी टीम की छवि को तोड़ना चाहती है और यह इसी तरह के प्रयास से संभव हो सकेगा। जितेन्द्र पाठक चाहे जो कोई भी हो इस सबके पीछे राजनीति की यही सोंच काम कर रही है। अब देखना यह होगा कि अन्ना राजनीति के इस शतरंजी चाल से कैसे निवट पाते है क्योंकि मशहूर शायर बशीर बद्र ने कहा भी है-

अगर इंसा से मिलना हो तो लहजों में सियासत रख,
शराफत से खुदा मिल जाएगा, इंसा नहीं मिलता।

14 अक्तूबर 2011

लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। उर्फ आओ पीएम पीएम खेले (व्यंग)



अरूण साथी
शेखपुरा, बिहार


पीएम की कुर्सी क्या हुई मुआ पंडितजी की घोड़ी हो गई, जो-सो, जहां-तहां चढ़ने को बेताब है। मुई घोड़ी तो घोड़ी ठहरी, कोई चढ़ा नहीं की बिदक भी जाती है।

सब जगह भगदड़ मची है। एक तो आधी जान की घोड़ी और उस पर पंडितजी की सवारी, गोया पंडित जी जबसे चढ़े है उतरने का नाम ही नहीं लेते।(वैसे जो भी चढ़ा है वह राजी से उतरना नहीं चाहता) कई अपने भी इस उम्मीद में मुई घोड़ी को टंगड़ी मार रहे हैं कि वह पंडित जी को पटक दे और उनका नंबर आ जाए। इसी कोशीश में ऐ जी, ओ जी, लो जी, सुनो जी, सब हथकंडा लगा दिया पर राम राम, पंडित जी घोड़ी पर से उतने के बजाय नाक पर रूमाल बांध, दे चाबुक की ले चाबुक-सरपट घोड़ी भगा रहे है।

और, अब विरोधी सब भी बैखला गए हैं। सोते-जागते, पीएम-पीएम खेल रहे है। कभी किसी को पीएम का सपना आ जाता है तो कभी कोई किसी को पीएम का सपना दिखा देता है। मुई भुखी, प्यासी और बिमार घोड़ी पर चढ़ने के लिए पता नहीं सब कब से हंफिया रहें हैं। कहीं कोई अधवैस (युवा) दलित भोजनम् का जाप करते हुए दलित के घर भोजन (सुखी रोटी या फिर माड़-भात नहीं) करते हुए गुनगुना रहा है-
घोड़ी पर चढ़के सवार, 
आया है दुल्हा यार, 
कमरिया में बांधे भ्रष्टाचार....
सब जैसे जबरदस्ती के बराती बन, जय हो, जय हो भज रहे हैं।
और उधर रथ लेकर निकले रूठे महाशय चौरासी की उम्र में घोड़ी पर चढ़ने को बेताब हैं।  कई बार असफल रहते हुए नाक मूंह तुड़बाने के बाद भी गुनगुना रहे-
अभी तो मैं जवान हूं, 
अभी तो मैं जवान हूं। 
मोती कुछ न बोलना, 
मुंह न अपनी खोलना। 
सांस जरा थम तो ले, 
मंदिर जरा हम तो ले....।

ओह, मुई घोड़ी की नन्ही जान और लाख आफत। जब रेस ही लगी हो तो कौन चूकेगा। सो मत चूको चौहान की तर्ज पर सबके साथ तीन टांग वाला लंगरू नाई भी रेस में है। उसके पास भी सबका माथा मूंड़ने का पुराना अनुभव है। उसे आश है कि चार टांग वाले जब सब आपस में लड़-भीड़ रहे है तो शायद उसे मौका मिल जाए। सेठ करोड़ी मल उसे बार बार ललकारता भी रहता है-लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। जय हो।

12 अक्तूबर 2011

पैदा करने वाली मां ने जिंदा बेटी को कफन देकर फेंका, 9 बेटी की मां नें उसे अपनाया।


शेखपुरा (बिहार)

बरबीघा रेफरल होस्पीटल के पीछे एक नवजात शिशु (बेटी) को लाल रंग का कफन ओढ़ा कर जिंदा ही झाड़ी में फेंक दिया गया और वहां से गुजर रही एक महिला को जब नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी तो उसने उसे उठा लिया। मामला मंगलवार की रात्री आठ बजे के आस पास की है। मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली इस घटना में जहां जन्म देने वाली मां ने बेटी जानकार नवजात शिशु को जन्म देने के बाद लाल रंग के कफन में लपेट कर ढकनीया पोखर के पास झाड़ी में फेंक दिया वहीं मानवता की मिशाल पेश करते हुए नालान्दा जिले के सारे थाना अर्न्तगत हरगांवां निवासी उषा देवी ने उसे गोद ले लिया। उषा देवी को पहले से ही नौ बेटी है और उसके बाद भी उसने फेंकी हुई बेटी को गोद लेकर मिशाल पेश की है। फेंके हुए नवजात को गोद लेने वाली उषा देवी बच्ची के फेंके जाने पर आक्रोश व्यक्त करती हुए कहती है कि बेटा हो या बेटी बच्चे भगवान के सामान है और समाज और दहेज के डर से ऐसा करना सबसे बड़ा पाप है।

02 सितंबर 2011

अन्ना, मीडिया बनाम एलीट बुद्धिजीवी


अन्ना हजारे को लेकर मीडिया के कवरेज पर आज कल सवाल उठाए जा रहे है और इसकी गूंज संसद से लेकर सड़क तक देखने को मिल रही है। कल आईबीएन 7 पर इसको लेकर बहस भी कराई गई अन्य चैनलों और अखबारों के संपादकीय में यह मुददा बहस का विषय बना हुआ है। इन्हीं सवालों को लेकर मेरा मन भी कई दिनों से मथ रहा है और आज एक आम पाठक और दर्शक के रूप में मैं भी इन सवालों के जबाबों में उलझना चाहता हूं। सबसे पहले मैं चैनलों की बात करू तो अन्ना के आंदोलन के पूर्व चैनलों पर खुले आम सरकार के हाथो बिके होने का आरोप कथित बुद्विजीवी लगाया करतेे थे और जब भटटा परसोल में राहुल को कवरेज मिलती थी तो लगता भी ऐसा ही था और आम तौर पर मेरे जैसे दर्शक चैनल पर इस तरह की खबर आने पर रिमोट का सहारा ले लेते थे। पर अन्ना का आंदोलन की परस्थितियां इससे विपरीत थी। कुल मिला कर तेरह दिन में सोना-जागना अन्ना के आंदोलन के न्यूज को देखते हुए हुई। जब कभी भी किसी भी चैनल पर विज्ञापन अथवा अन्य खबर आई फिर से रिमोट का सहारा लिया और अन्ना की तलाश होने लगी। अपने कार्यालय में चंदा कर डीजल लाया और दिन दिन भर अन्ना का न्यूज देखता रहा। मैं ही नहीं मेरे साथ कई कई लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर इस कार्य में जुटे रहे। यह जन भावना थी और इसी जन भावना को समझते हुए समाचार चैनलों ने अपनी जिम्मेवारी निभाई। कभी कभी तो ऐसा हुआ कि कई चैनलों पर विज्ञापन एक साथ आए तो फिर अन्ना की तलाश मे विजनस चैनल तक चला जाता जहां अन्ना ही दिखाया जा रहा था। 

इस कड़ी में मैं एक बाकया बताना चाहूंगा। बारहवे दिन जब संसद में बहस चल रही थी तब केबुल मे कुछ तकनीकी गड़बड़ी आ गई और प्रसारण कुछ देर के लिए रूक गया तो मेरे मित्र मनोज कुमार सहित कई लोगो को मोबाइल मुझे आ गया कि क्या हुआ, क्योंकि मेरा कार्यालय केबुल प्रसारणकर्ता कार्यालय के पास ही है। और मुझे जबाब देना पड़ा। ऐसा क्यों हुआ। क्यांेकि घरों में भी सपरिवार लोग अन्ना के साथ बैठे थे। मेरी बीबी आम गृहणी है। धरेलू महिला। आम दिनो मे वह सास बहू के सिरीयल को लेकर झगड़ जाती और घर मे न्यूज चैनल देखना दुभर हो जाता पर इन तेरह दिनो मे मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ?

यह एक सहज जन उभार का परिचायक है। अन्ना ने आम आदमी के दर्द को हवा दी और वह भी किसी महापुरूष की तरह नहीं, आम आदमी बन कर। अन्ना मंे लोगों को अपना चेहरा दिखा। वहीं सादगी, वही भदेशीपन! 

कल आशुतोष ने कहा कि मीडिया पर आरोप लगता है कि अन्ना को महापुरूष बना दिया और जबाब भी आशुतोष ने ही दिया कि मीडिया तो बाबा रामदेव से लेकर राहुल तक को फूल कवरेज दी वे क्यों नहीं महापुरूष बन गए? देहात में एक कहावत है दूध माफीक ही पानी मिलाया जाएगा। मतलब एक लीटर दूध में आप आधा लीटर पानी मिला सकते है पांच लीटर नहीं। वहीं बात मीडिया पर लागू है लोगों की भावनाओं को समझ मीडिया ने दूध में हिसाब से कुछ पानी उसमे मिलाया।

मुझे याद है जब आशुतोष ने एंकर की सीट से बोलते हुए कहा कि रामलीला मैदन में घटने वाली इस ऐतिहासिक घटना का मैं भी गवाह बनना चाहता हूं और अगले दिन वह रामलीला मैदान में माइक थामे नजर आए और देखने वालो को यह फर्क समझ में नहीं आ रहा था कि स्टूडियो में गोरा चिटटा, बेल मेंटेन दिखने वाला यह आदमी काला कलूटा क्यों दिख रहा है? कमर पर हाथ रखे जब आशुतोष बोल रहे थे मुझे लग रहा था जैसे दिन भर लहलहाती धूप मे हल जोतने के बाद कमर पर हाथ रख कर किसान थोड़ी देर के लिए सुस्ताना चाहता हो।

आईबीएन 7 की ही एक महिला रिर्पोटर ने चिलचिलाती धूप से बचने के लिए जब दुप्पटे को आंचल बना, सर पर रख एंकरिंग की तो ऐसा लग रहा था मानो धान की खेत में रोपनी रोपा रोपते हुए कजरी गा रही हो- सखी हे आइल देश के बरिया अब तो छोड़हो दिहरिया (चौखट) न....।

कुल मिला कर अन्ना के आंदोलन के कई निहितार्थ है जिसमें सबसे बड़ा यह कि आम आदमी को अन्ना के रूप में अपनी छवि नजर आती है। वहीं सांसद शरद यादव अन्ना और उनकी टीम पर व्यंग करते है और अरूंधंति राय और अरूणा राय सरीखे एलीट बुद्धिजीवी अन्ना पर सवाल खड़े करते है तो साफ झलक जाती है कि एक सातंवी जमात पास बुढा आदमी कैसे इन एलीटों से आगे चला गया। शरद यादव सरीखे कथित संपूर्ण क्रांति की उपज को खोर खोर कर खाने वाले नेताओ को भी लगता है कि इतने दिनो की राजनीति में भीड़ इक्कठा करने के लिए उन्हें भाड़े के लोग जुटाने पड़ते है पर रामलीला मे अन्ना के साथ लोग भुतियाल है।

हुर्रहुर्र की राजनीति करने वाले लालू जी के लिए तो प्रख्यात कवि अरूण कमल की यह रचना ही श्रेष्यकर रहेगी-

असत्य के प्रयोग?

किसने सोंचा था वह इस तरह जायेगा
कहता था मैं कौआ का मांस खाकर आया हूं
मरूंगा नहीं मैं इसी जगह राज करूंगा पूरा कलयुग
थर्र कांपता था पूरा ईलाका
दरोगा से मंत्री तक सब उसके जूते की गंध से पाते थे होश
बिना मंुडेर वाली छत से वह दिन भर मूतता रहता
आते जाते किसी भी आदमी के सिर पर खल खल 
ऐसा प्रताप था उसका
यही अर्थ था उस युग में न्याय का
और एक दिन
एक दिन मंुह अंधेरे जब बूढ़ी औरतें
जा रही थी गंगा नहाने भजन गाते टोल में
भागी चिल्लाते रोते कलपते
वह गिरा पड़ा था औधा गली में
रात में
आदतन उठा होगा मूतने 
मूतते मूतते बढ़ता गया होगा बिना मंुडेर की छत पर
और गिरा होगा भक्क मूतते अचक्के
अपने ही खून और पेशाब से डूबा
पड़ा है बीसवीं शताब्दी का एक और अजूबा।

इतिश्री

26 अगस्त 2011

अन्ना का आंदोलन लोकतंत्र के लिए खतरा?-राहुल


लो जी, कांग्रेस के तथाकथित युवराज ने आखिर कर मंुह खोल ही दिया पर वही तोंता रटंत? बेचारे को जो सिखाया पढ़ाया गया उसे ठीक से पढ़ कर और याद कर संसद में रखा और कह दिया कि अन्ना का आंदोलन लोकतंत्र के लिए खतरा?

बेचारे को कौन बतलाएगा कि यही आन्दोलन है तो लोकतंत्र जिंदा है वरना उनके दादी ने इसे मारने के लिए कोई कोर कसर उठा नहीं रखी थी।

मुझको तो इस सब में राहुल को प्रोजेक्ट करने की बू आ रही......

पर मीडिया का कैमरा सामने आते ही बेचारे लंगोटी उठा कर भागने लगते है, पता है तोंता रटंत के आलावा भी कुछ बोल न दे...

जय हो, जनाब  को भावी प्रधानमंत्री कहा जाता है.. भगवान भला करे इसे देश का...

24 अगस्त 2011

निर्लज हो तुम...


निर्लज हो तुम...

इतने हील हुजज्त के बाद भी हमारे प्रधानमंत्री को अन्ना से बात करने की फुर्सत नहीं है! आज की सर्वदलिये बैठक के बाद तो एक बात साफ हो गई कि इस देश को लूटने में सभी बराबर के भागीदार है। सबसे दुखद तो यह कि जब देश जल रहा है सरकार की मुखीया विदेश में और उनका लाडला तथाकथित युवराज और भावी प्रधानमंत्री आंचल में मुंह छुपाये सो रहा है। शर्म करो।


निर्लज हो तुम
लोक लाज सब धो कर
पी गए हो..
चुल्लू भर पानी भी
कम है अब
तेरे डूब मरने के लिए...

अरे एक बुढ़ा-नैजवान
जान को लगाकर दांव पर
भारत मां की लाज बचाने
बैठा है
भूखा
कई दिनों से...

और तुम,
तुम सरकार हो
इसलिए
बैठकों में फांकते हो काजू...

और
दाबते इफ्तार के साथ साथ
प्रजातंत्र को चबा चबा कर निगलना चाहते हो

और तुम
अब जबकि
सारा देश
मां की आबरू रक्षार्थ
उठ खड़ा हुआ है
उनकी अस्मत पर आज भी
हाथ डालने से गुरेज नहीं करते.......

12 अगस्त 2011

अथ साष्टांग आसन कथा----(चुटकी)

साष्टांग आसन बहुत ही लाभप्रद और फायदेमंद है और इस आसन को आजमा कर कई लोग फर्श से अर्श तक पहूंच गए है। इस आशन के बारे में अभी बाबा देव ने किसी दूसरे को बताया ही नहीं, बस स्वतः ही आजमाते रहे और कांग्रेस से भी इस आसन को करबाते रहे।

अभी अभी जब बाबा सलबार सूट में दिखे तभी मैं समझ गया कि ऐसा क्यों हुआ। दरअसल इससे पहले बाबा साष्टांग आसन को आजमा रहे थे पर जैसे रही उन्होंने इस आसन का त्याग किया परिणाम कष्टदायक हो गया।

आसन के तरीके
सबसे पहले गहरी सांस ले और झूठ-मूठ का परेशानी अपने चेहरे पर ओढ़ ले। इसके बाद जिस किसी के पास इस आसन का प्रभाव छोड़ना है उसके सामने अपनी कमर नब्बे डिग्री पर झुका ले!

लाभ
कलीकाल में यह आसन काभी फलदायक सिद्ध होता है और सभी बिगड़े काम बनते चले जाते है। इसके फल से उच्च शिखर की प्राप्ती बिना किसी कर्म के ही हो जाती है।

उदाहरण
वैसे तो इसके कई उदाहरण आपको अपने आस पास मिल जाएगे और इतिहास में इसके कई उदाहरण है पर वर्तमान मे अपने मोहन बाबा इस आसन को आजमा कर कहां है सबको पता है।

नोट- 
कमर सीधी रखने वाले लोग आज कल पसंद नहीं किए जाते और अन्न, केजरीबाल, बेदी और भूषण सरीखे लोग इसलिए सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए है।

निष्कर्ष
इस युग मे कमर सीधी रखने वाले बिरले ही मिलते है और कहा जाता है कि ईश्वर आज इसी रूप में धरती पर बास करते है।

20 जुलाई 2011

नवजात शिशु को कुंआ मे फ़ेंका, सांपों के बीच रहे शिशु को गांव वालों ने बचाया। जाको रखे सांइयां मार सके न कोई।

लावारीस शंकर 



यह सपने की तरह लगता है,मेरी कहानी के साथ ही साथ एक हकीकत चल रही थी और उस हकीकत को देख रूह कांप गया। बरबीधा के कुटैत गांव में जहां एक मां ने अपने बेटे को चालीस फिट गहरे कुंए में सांपों के बीच मरने के लिए फेंक दिया वहीं एक मां ने अपने बेटे को शौचालय में जा कर फेंक दिया जैसे की वह भी मल मुत्र की तरह त्याग्य हो?

कुएं के पास खड़े ग्रामीण जिन्होने बच्चे को बचाया।




इस तरह की घटनाऐं हमारी समाज में जब भी घटती है तो इसमें हम उस मां को कोसते है जिसने कुंती कर तरह अपने कोख से जन का बच्चे को फंेक देती है, सच भी है कि यह निंदनीय ही नहीं बल्कि उस मां के मनुष्य होने पर सवाल खड़ी करती है पर इस सब के बीच जब कथित समाज में वह कुंवांरी मां अपने बेटे के साथ आ बैठती तो हमारा कथित सभ्य समाज भी राक्षसी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता?

ऐसा ही हुुआ, जिसने भी सुना उसका कलेजा मुंह को आ गया। एक नवजात बालक दुधमुंह और उसे चालीस फीट गहरे सुखे कुंऐं में फेंक दिया गया और चार चार सांप के बीच एक दुधमंुहा बच्चा रो रहा है। हे भगवान। यह लोमहर्षक और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला मंजर था बरबीघा के कुटौत गांव का। इस गांव में बकरी चराने के क्रम में बच्चांे ने कुंऐ में से बच्चे के रोने की आवाज सुनी और जब झांक कर देखा तो एक दुधमंुहा बच्चा कुंऐं में फेंका हुआ है और उसके इर्द-गिर्द तीन चार सांप लोट रहे है। जंगल में आग की तरह यह खबर गांव मंे फैल गई और घीरे घीरे लोग जमा होते गए। गांव वालों ने संवेदना दिखाई और कुंऐं में सीढ़ी लगा कर बच्चे को बचाया। यह सांपो के बीच से बच्चे को निकालने का साहस किया विपिन कुमार ने। फिर गांव के ही एक महिला संजु देवी ने इस बच्चे को अपना लिया। यह बेटा था। प्रत्यक्षदर्शीयों की माने तो सांप बच्चे की रक्षा कर रहा था और जब बच्चा रोने लगता था तब वह हलचल कर उसे बहलाने की कोशिश करता। जब कुंए से बच्चे को निकालने के लिए विपिन कुंए में प्रवेश किया तो सभी सांप अलग हट गया।

बच्चे को कुंए से निकाल कर डा. रामानन्दन प्रसाद के पास उसका ईलाज कराया जहां उसे खतरे से बाहर बताया गया। गांव के लोग सावन के महीने में सांपों के बीच रहे इस बच्चे को भगवान शंकर की कृपा मान रहा है और इसलिए इस बच्चे का नाम शंकर रख दिया गया है।


वहीं तैलिक बालिका स्कूल के शौचालय में एक नवजात बच्ची को फेंक दिया गया और जब छात्राऐं शौचालय गई तो नवजात पर नजर गई और फिर भीड़ जमा हुई पर उसे किसी ने नहीं बचाया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

कुछ भी पर जहां एक तरफ एक मां ने अपनी कोख से जन्म देकर अपने ही बेटे को कुंए में मरने की नियत से फंेक दिया वहीं गांव के लोगों ने उसे बचा कर एक मां के आंचल में दे दिया है।
किसी शायर ने सच ही का है घर से मंदिर है बहुत दूर चलो यू कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।

05 जुलाई 2011

पत्नी के नाम पर नौकरी करने वाला फर्जी शिक्षक हिरासत में। बीईओ की संलिप्तता से हो रही थी गड़बड़ी।

शेखपुरा शेखोपुरसराय के ओनामा पंचायत के प्राथमिक विद्यालय सीतारामपुर में पत्नी के नाम पर नौकरी करने वाला फर्जी शिक्षक का हिरासत में ले लिया गया। ऐसा जिलाधिकारी को मीडिया के द्वारा दी गई सूचना के बाद त्वरित कार्यवाई की वजह से संभव हो सका। सीतारामपुर प्राथमिक विद्यालय में कई तरह की अनियमितता पाई गई जिसमें प्रधानाध्यपिका अर्चना कुमारी के जगह उसके पति संजय कुमार को नौकरी करते हुए धर लिया गया वहीं एक अन्य शिक्षका सरोज कुमारी पिछले एक साल से गायब है और उसकी उपस्थिति बना दी गई है। इतना ही नहीं स्कूल में उस दिन मात्र दस बच्चों की उपस्थिति थी पर मीड डे मील में गड़गबड़ी करने और रकम को अधिक निकासी को लेकर 54 बच्चों की उपस्थिति रजिस्टर में बनाई गई थी। विघालय की इस गड़बड़ी की सूचना मिलने के बाद जिलाधिकारी ने स्वयं पहल करते हुए अनुमण्डलाधिकारी मंजूर अलि को जांच के लिए भेजा जहां मौके पर ही शिक्षक को पत्नी के जगह नौकरी करते घर लिया गया। मौके पर घरे शिक्षक ने मंजूर अलि को बताया कि बीईओ के मौखिक आदेश के बाद ही सरोज देवी नामक शिक्षका अपने पति के यहां गुजरात चली गई है। इसको लेकर शिक्षक के द्वारा सरोज देवी का कोई छुटटी का आवेदन मांगने पर भी नहीं दिया गया। मनमाने ढंग स ेचल रहे इस विद्यालय को शिक्षक का जब मन होता था तभी खोला जाता था। पिछले दो माह से यह विद्यालय बंद था और इस सोमवार से ही खोला गया है। अनियमितताओं का पुलंदा ही इस विद्यालय में सामने आया है जिसमें बिईओं की संलिप्पता साफ नजर आती है। इस संबध्ंा में जब बिईओ से बात की गई तो उन्होंनों ऐसा कुछ नहीं होने की बात कही जबकि मौके पर घराये शिक्षक ने बिईओ की संलिप्पता से इस तरह का खेल चलने की बात कही। मौके पर छात्र पिन्टू कुमार, बंटी कुमार, विकास कुमार सहित अन्य ने बताया कि विद्यालय में जब भी खुलता है तब मिड डे मिल सही नहीं मिलता और मार भात ही खिलाया जाता है।
मौके पर जब अनुमण्डलाधिकारी ने खद्न्न की वही मांगी जो प्रधानाध्यपिका के घर मे होने की बात कही।

15 जून 2011

बिहार में अघोषित आपातकाल है? मैं कहता हूं आंखन देखी......


बिहार में अघोषित रूप से आपातकाल लगा हुआ है और मैं ऐसा खिंज कर या फिर गुस्से में आकर नहीं कह रहा बल्कि जो इन दो खुली आंखों से देखता वह हमेशा उद्वेलित करता है। कई घटनाऐं है जिसमें कुछ वानगी मैं यहां रखना चाहूंगा। पहली घटना फारविसगंज की जहां एक एसपी के सामने पुलिस के जवान ने नृशंस रूप से राक्षसी प्रवृति का परिचय देते हुए एक युवक की हत्या इस लिए कर दिया कि वह प्रदर्शन कर रहा था पर इस घटना के बाद सरकार का जो पक्ष रहा वह पुलिस के पक्ष मंे रहा और छोटे अधिकारियों की गर्दन नाप कर हमेशा की तरह इस घटना की भी लीपा पोती कर दी गई।

दूसरी एक बड़ी घटना नीतीश कुमार के गृह जिला नालान्दा की है जहां तीन युवकों को अपराधियों मोटरसाईकिल सहित जला कर दिन दहाड़े मार दिया वहीं प्रशासन के द्वारा पहले यह कोशिश की जाती रही कि मामल सड़क दुर्धटना को लगे पर बाद में मीडिया के पहल पर मामला सामने आया तो पुलिस गलथेथरी करती नजर आई।

अब मैं अपने अनुभव की बात कहता है। दो ताजी पुलिस करतूत। पहली यह कि बरबीघा के सामाचक में महेन्द्र पंडित के द्वारा एक बृद्व महिला का घर ढाह दिया गया और यह सब हुआ पुलिस कें ईशारे पर। हुआ यूं कि पुलिस के पास महेन्द्र कोर्ट की डीग्री लेकर आया कि जिस जमीन पर बुढ़ी महिला रहती है वह उसकी है उसे खाली करा दिया जाय। कानून के अनुसार खाली कराने मंे लंबा समय लगेगा और पुलिस ने मोटी रकम लेकर महेन्द्र को स्वतः ही घर खाली करा लेने की बात कह दी और फिर बुढ़ी महिला का पुरा घर ढाह दिया गया। सामान को सड़क पर फेंक दिया गया। उसकी बहु की गोद में पांच दिन का बच्चा था जिसे खिंच कर बाहर कर दिया गया और वह घूप में रह रही है।

दूसरी घटना अहियापुर की सोनी कुमारी एक महिला सुबह सात बजे यह फरीयद लेकर थाना आती है कि उसका पति दूसरी शादी कर रहा है कृप्या इसे रोका जाय और शाम तीन बजे तक किसी ने उसे इंटरटेन नहीं किया। शाम में पहले पुलिस उस पर समझौता का दबाब बनाया और जब वह नहीं मानी तो थाने से उसे भगा दिया गया।

इस तरह की घटनाऐ प्रति दिन घटती है जिससे हमेशा इस बात का संदेश जाता है कि बिहार मंे नौकरशाह और पुलिस मिलकर अपनी निरंकुश सत्ता चला रही है जिसमें जनता की आवाज नहीं सुनी जाती। पुलिस ने तो एक नायाब तरीका खोज लिया है कमाई का पहले पीड़ित का केश दर्ज करो फिर नामजद लोगों से मोटी रकम लेकर उसका केश उससे भी पहले दर्ज कर लो।

जनप्रतिनिधियों में आम नेताओं का तो कहीं कोई सुनता ही नहीं और सारी ताकत एको अहं द्वितीयांे नास्ति की तर्ज पर केन्द्रित हो गयी है जिसका परिणाम है कि विघायक भी किसी आम पीड़ित के लिए इंसाफ नहीं कर पाता, उसकी कोई सुनता ही नहीं?

भ्रष्टाचार चरम पर है और मुख्यमंत्री के जनता दरबार से जब पत्र थानेदार के पास जांच के लिए आता है तो वह पिड़ीत को बुला कर कहता है देख लिया न, कोई फायदा हुआ जब सब कुछ मुझे ही करना है तो वहां जाने से क्या फायदा। पर ढीढोरा ऐसा पीटा जा रहा है जैसे बिहार किसी दूसरे ग्रह की कोई जगह है जिसमें सबकुछ नायाब हो रहा है।

यहां यह बात भी सही है कि इस सब के बाद भी बिहार बदल रहा है पर इस बदलाव में जिस फर्मुले का प्रयोग किया जा रहा है उसका दुस्परिणाम अब सामने आने लगा है और यह सब देख कर लगता है जहां जनता की आवाज सुनने वाला कोई नहीं उसे आपातकाल नही ंतो क्या कहेगें?

11 जून 2011

एटावावाद में आतंकवादियों का सम्मेलन सम्पन्न?



कार्टून - बामुलाहिजा ब्लॉग से साभार 


टेरर वर्ल्ड में आज कल जिस खबर की चर्चा ब्रेकिंग न्यूज की तरह हो रही है वह ओसामा विन लादेन के पाक की मिली भगत से मारे जाने की नहीं बल्कि कसाब पर भारत सरकार के प्रति दिन 15 लाख रूपया खर्चने तथा दिग्गी के ओसामा जी संबोधन की है।

इस सबंधं में असुत्रों से मिल रही सूचना के अनुसार दुनिया भर के टेररिस्टों की एक बैठक एटावाबाद के ओसामा हाउस में आयोजित की गई। बैठक में सर्वसम्मति से भारत सरकार की आतंकियों के मेहमानबाजी करने तथा बाबाओं को खदेड़ खदेड़ का पीटने की भूरी भूरी प्रसंसा की गई। साथ ही साथ सोनीया मैडम के डपोरशंखी डुगडुगी (दिग्गी) की जिह्वा पर बैठकर ओसामा जी ओसामा जी उचारने को लेकर धन्यवाद ज्ञापित किया गया। साथ ही अन्ना की अन्ट सन्ट और बाबा की बकबक पर दमनचक्र चलाने के लिए मन (सोनी) मोहन के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा गया कि इस प्रकार के कालाधन और भ्रष्टचार पर अंकुश लगा देने से हमलोगों का कारोबार चौपट हो जाएगा एवं बड़े नेताओं, नौकरशाहों तथा व्यापरियों के ‘‘खून की कमाई’’ लुट जाएगी। 

अन्त में अपने अध्यक्षीय संबोधन में दाउद भाई ने कहा कि अमेरकी ड्रोन हमलों से बचने तथा बाकि जिंदगी ‘‘शांति के साथ’’ बिताने के लिए वह इंडिया में सरेन्डर करेगा तथा सभी लोगों को भी ऐसा ही करना चाहिए। इस समझौते के अनुसार इस कार्य के लिए समय समय पर फतवा जारी करना होगा। बस।
वहीं अलजवाहरी के एक सवाल के जबाब में भाई ने कहा कि उनके लिए एक सेमिनार ‘‘ सम्प्रदायिकता से देश को खतरा’’  का आयोजन दिल्ली के मंतर मैदान में करा देते है शर्त यही होगी की वहां भाजपा और आर एस एस को गरियाना होगा । भाई ने बताया कि गिलानी का दिल्ली वाला सेमिनार उसी ने मैडम से बतिया कर मैनेज करवाया था।

अन्त में सर्व सम्मति से अमेरिका से पंगा नहीं लेते हुए दुनिया में आतंक फैलाने का निर्णय लिया गया एवं अमेरिका के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए पाक के माध्यम से हथियार उपल्बध कराने के लिए धन्यवाद दिया एवं निर्णय लिया गया कि भारत के सरेन्डर करने की जानकारी हर किसी को ईमेल, एसएमएस, मोबाइल सहित अन्य माध्यमों से देना है और जिनके नाम की प्राथमिकी उधर के थाने में दर्ज नहीं है उनके नाम की प्राथमिक थाने मंे दर्ज कराने के लिए प्रति आतंकी 500 रू. का नजराना अग्रिम जमा कराना होगा।

06 जून 2011

मुझे ऐसा क्यों लगता है।


रामलीला मैदान में
देख कर रावण लीला
मुझे ऐसा क्यो लगने लगा
जैसे
मैंने ही अपने हाथ में लेकर डंडा
चला दिया हो शहीद की उस बीबी पर
जिसने अपने पति के प्राण देश पर न्योछावर कर भी
रूकना नहीं सीखा
और
आ गई रामलीला मैदान
प्रतिकार करने ?

और मैं घर में टीवी से चिपका
दिन भर
सबकुछ
देखता रहा
बस...

मुझे ऐसा क्यों लगता है कि जिस हाथ ने उसके कपड़े फाड़े
वह मेरे ही हाथ थे
जिससे
प्रजातंत्र का राजा
आज अजानबाहु बन गया है?

पर
वह देह
जिसे ढकने के लिए
विधवा
दूसरों से मांग रही थी एक कमीज
वह तो
भारत मां की देह थी?

मुझे ऐसा क्यों लगता है
जैसे
बाबा की आवाज मुझे शर्मींदा कर रही है
और जब अन्ना निराश होते है
तो आत्मग्लानी से मेरा मन भर जाता है..

मुझे ऐसा क्यों लगता है
जैसे
लहू मेरे ही हाथ में लगी है
और मैं
रगड़ रगड़
साफ कर रहा हूं
पर
यह तो धुलता ही नहीं

पर यह क्या
कैसा है इस लहू कर रंग
.
.
तिरंगा....



30 मई 2011

बिहार के पदाधिकारी भ्रष्टाचार के पोशक, देखिए नजरा।


कल फिर एक एनजीओ के द्वारा करोड़ों रू. की ठगी की बात को सामने लाने में संधर्ष करना पड़ा, कड़ा सधर्ष। इससे पहले के पोस्ट में एनजीओ के कारनामों का विवरण है। हुआ यूं की एक मित्र के माध्यम से यह जानकारी मिली की महिलाओं से रूपया लेकर पालनवाड़ी केन्द्र खोलबाने वाली संस्था के आगे बहुत सी महिला जमा है और महिलाओं को आठ माह से वेतन नहीं दिया गया जिससे वे नराज है। इंडियन फारमर टरस्ट के नाम से संचालित इस संस्था के बारे में मैं पहले से ही जानता था और दो तीन बार उसकी संदिग्ध गतिविधियों की रिर्पोट भी प्रकाशित कर चुका हूं। सो मैं वहां पहूंचा और रिर्पोट बनाने लगा  इसी बीच संचालक आया और मुझे न्यूज बनाने से रोकने लगा पर मैं निर्भीक होकर न्यूज बनाता रहा। संचालक के द्वारा अपने आदमी को बुलाया जा रहा था ताकि हमको रोका जा सके इसकी सूचना मैं तत्काल थानाध्यक्ष को दी और फिर एसपी को भी इस बात की सूचना दी की एक एनजीओं के द्वारा किस तरह महिलओं को ठगा गया पर एसपी ने साफ कह दिया कि इसमें पुलिस का कोई रोल नहीं। फिर मैंने डीएम से बात की जिसके बाद उनके द्वारा तत्काल कदम उठाया गया और दो धंटे बाद मौंके पर थानाध्यक्ष पहूंचे। थानाध्यक्ष ने पहूंचते ही ठगी की शिकार महिलाओं को हतोत्साहित करना प्रारंभ कर दिया। थानाध्यक्ष महिलाओं को साफ साफ कह रहा था कि हमसे पूछ कर पैसा दिया और आज जब भाग गया है तो हल्ला कर रहे हो। साथ वह महिलओं को ही जेल भेज देने की धमकी देने लगा। थानाध्यक्ष के इस कदम के बाद महिलाऐं वहां से भाग गई पर एक दो ने साहस किया और वहीं खड़ी रही। मैं थानाध्यक्ष से उलक्ष गया। 

इसके बाद एडीएम सहित दो तीन अन्य पदाधिकारी आये और मामले की जांच करने लगे। पदाधिकारी के सामने महिलाओं को सारी घटना बता दी और एक दो ने लिख कर भी दे दिया। फिर एनजीओं के कार्यालय को सील कर दिया गया। इसके बाद हमलोग चले गए। बाद में थानाध्यक्ष ने उस महिला को जिसने लिखित शिकायत की जेल जाने की धमकी देकर वहां से भगा दिया और इस घटना की प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। एडीएम ने खुद फोन कर दरोगा की करतूत के लिए अफसोस जाहिर की पर कार्यवाई डीएम साहब करेगें ऐसा कहा।

चुंकी इस खुलासे मंे बडे़ अधिकारी के फंसने की बात सामने आ रही है सो सभी मैनेज करने में लगे है।

उधर इस खुलासे के बाद संचालकों के एक समर्थक ने दबी जुबान में वहीं कहा की डर नहीं लगता है बहुत खतरनाक और पहूंच बाला आदमी है तुमको क्या मिलेगा यह सब करके। अरे कमाने दिजिए, जात भाई ही तो है। साथ ही उसने यह भी कहा कि अंजाम बुरा भी हो सकता है। मैं वहीं साफ कर दिया कि इन सब बातों की परवाह नहीं करता।

उधर चैनलों मंे यह खबर अभी नहीं चलाई गई क्योंकि किसी अधिकारी ने बयान नहीं दिया। जिलाधिकारी रविवार होने की वजह से आवास पर किसी से नहीं मिले वहीं चैनल ने साफ कहा कि घोटाला कितना भी बड़ा हो अधिकारी का बयान चाहिए।


पर आज सभी अखबारों ने प्रमुखता से खबर प्रकाशित की है।


देखिए आज बयान मिल पाता है या नहीं मिलने पर घोटाले की खबर मर जाती है।

पर मैं इस अभियान को जारी रखा है और अंतिम दम तक इस महाठगी के खिलाफ लड़ूगा। 

इसी कड़ी में बीती रात महाठग की निजी डायरी मेरे हाथ लग गई है जिसमें इस बात जिक्र है कि शाखा कहां कहां है और किसने कितना रूपया दिया और दलाल का नाम भी बगल मंे इंगित है । अब देखिए आगे यह डायरी क्या क्या रंग लाती है यह आज पता चलेगा। 

पता नहीं क्यों इस तरह की बात जब सामने आती है तो एक अलग तरह का जुनून पैदा हो जाता है लड़ने का, कल से ही  बेचैनी से ही लगी हुई है। देखिए यह जुनून कब तक बची रहती है।

29 मई 2011

शेखपुरा जिला के बरबीघा से संचालित एक एनजीओ इंडीयन फार्मर टरस्ट ने 15 करोड़ से अधिक की राशि का महाघोटाला किया।


अन्तर्रराष्टीय स्तर पर एनजीओं ने की महाठगी।

नटबरलाल एनजीओ संचालक।
स्थानीय पुलिस जानकारी के बाद भी चुपी साधे रही।

शेखपुरा जिला के बरबीघा से संचालित एक एनजीओ इंडीयन फार्मर टरस्ट ने 15 करोड़ से अधिक की राशि का महाघोटाला किया।

पालनवाड़ी के नाम पर बसुला 10000 से 25000 प्रति व्यक्ति।

करोड़ों लेकर फरार हुआ एनजीओं।

यहां से पूरे बिहार एवं नेपाल में संचालित होता था करोबार।

पदाधिकारी भी आकर भाग लेते थे इसके कार्यक्रम।

सिविल सर्जन, बिडिओं और जिला शिक्षा पदाधिकारी के आने से लोगों में जगा भरोसा।े

नेताओं की भी थी सह।

एक एक गांव में एक दर्जन से अधिक केन्द्र खोलो।

विधवा और विकलांग को भी नहीं बख्सा।

12 साल की छात्रा को भी बनाया शिक्षका और खोलबाया केन्द्र।


कर्ज लेकर और जेबरात बेच कर महिलाओं ने दिये पैसे।


यह एक शातिर दिमाग एनजीआंे संचालक के द्वारा की  गई महाठ्रगी का मामला है जिसके द्वारा पूरे बिहार से नेपाल तक करोड़ों रूपयों की ठगी कर ली गई है। इस नटवरलाल एनजीओं संचालक ने पहले तो इंडीन फार्मर टरस्ट का बोर्ड लगवाया। फिर समारोह में अधिकारियों को बुला कर लोगों को प्रभावित करने के लिए कंबल भी बांटे। इस एनजीओ का संचालन सतीश कुमार नामक मास्टर मांइड करता था जिसका सहकर्मी था संजीव कुमार, सतीश कुमार विधार्थी, विजय कुमार  आदि।

सतीश कुमार नवादा जिला के समाय का निवासी है वहीं स्थानीय कार्यालय संचालक संजीव कुमार यहीं के खोजागाछी गांव का रहने वाला है।

एनजीओं संचालक एम्बेस्डर कार से पहले गांव में जाता था और एम्बेस्डर के आगे लाल रंग का नेम प्लेट लगा रहता था जिसपर एनजीओं का नाम रहता था जिससे लोगों को यह आभास हो कि यह सरकारी है

एनजीओ संचालक सतीष कुमार मातृ कल्याण और शिशु पालन बाड़ी के नाम से सेंटर खोलने की बात कह कर 10000 से 25000 रू. बसुल करता था। एक एक टोले में एक दर्जन लोगों का सेंटर खोल दिया जाता था जिसमें 40 शिशुओं को पढ़ाने की बात कही जाती थी। साथ ही महिलाओं को यह आश्वासन दिया जाता था कि पहले दो माह के लिए 500 रू. प्रति माह, फिर 2000 रू. प्रतिमाह तथा फिर परीक्षा में पास होने के बाद 10000 रू. प्रतिमाह बेतन दिया जाएगा। इस झांसे में आकर महिलाओं ने कर्ज लेकर या फिर जेबरात बेचकर नजराना दिया और केन्द्र भी खोल दिया गया। शुरूआत मंे बाजार बनाने के लिए कुछ लोगों को एक महिना का बेतन 500 या 1000 दिया भी गया जिससे लोगों को भरोसा और भी पुख्ता हो गया और महिलाओं ने अपने सगे संबधियों को इससे जोड़ दिया और देखते ही देखतेे पूरे बिहार मे इसका नेटवर्क फैल गया।

वेतन नहीं मिला तो महिलओं को हुआ ठगी का एहसास

पिछले आठ माह से जब महिलओं को निर्धारित बेतन नहीं दिया गया तब जाकर महिलाअें को ठगे जाने का एहसास हुआ। मौके पर मौजूद बरबीघा थाना क्षेत्र के नरसिंहपुर निवासी कांति देवी, रजोरा निवासी प्रियंका कुमारी, कन्हौली निवासी रेणू देवी,  गंगटी निवासी सुभाष पासवान, शेखपुरा थाना के मुरारपुर निवासी साधना देवी, मुख्यमंत्री के नाम लिखे आवेदन में इसकी शिकायत की है तथा वहीं पुलिस को भी लिखित रूप में इसकी शिकायत की है।

बच्चों और विधवाओं को भी नहीं बख्शा


सर्वा पंचायत के रजौरा गांव में नवमीं की छात्रा प्रियंका को बना दिया सेविका। वहीं नगर पंचायत के सामाचक मोहल्ले में बबीता 15 साल को भी सेविका बहाल कर दिया।

वहीं विधवाओं ने आसरे के तौर पर इसकी ओर देखा और जेवरात बेच कर पैसा दिया उन्हें भी आज पछताना पड़ रहा है।


शातिर संचालक ने महिलाओं को पैसा लेने का किसी भी प्रकार का रीसीभिंग नहीं दिया और महिलओं से यह भी लिखबा कर ले लिया कि मैं निःशुल्क और निःस्वार्थ भाव से सेविका पद पर कार्य करूगी।

महिलओं से स्टाम्प पेड पर भी शपथ ले लिया गया।

इस तरह से एनजीओं का महाठग अभियान चलता और फिर कई माह बीत जाने पर जब बेतन नहीं मिला तब महिलाऐं कार्यालय आई तो वहां से लगातार उन्हें बहाने बना कर लौटा दिया जाने लगा। जब इसकी सूचना राष्टीय सहारा को लगी तो वह वहां पहूंची तब महिलओं ने अपना दुखड़ा सुनाया।


दरोगा जी ने महिलाओं को ही हड़काया।

बाद में जब इसकी महाठगी की सूचना स्थानीय थाना को दी गई तो थानाध्यक्ष दो धंटे बाद धटनास्थल पर पहूंचे और महिलओं को ही डराने घमकाने लगे की क्यों पैसा दिया और साफ कहा कि इस मामले में पुलिस कुछ नहीं कर सकती। यहां तक की थानाध्यक्ष एस एस सिंह ने बाद में जिन महिलओं ने आवेदन दिया उसे भी यह समझाते रहे क्यों कानूनी लफडे और पुलिस के चक्कर में फंसते हो।


जिलाधिकारी की पहल पर हुई कार्यवाई। कार्यालय हुआ सील।

बाद में इसकी सूचना  जिलाधिकारी को दी गर्इ्र तो उन्होने तत्काल कार्यवाइ्र करते हुए पदाधिकारी को धटनास्थल पर भेज कर कार्यालय को सील करवाया तथा महिलओ का बयान दर्ज किया। मौके पर पहूंचे एडीएम महेन्द्र सिंह ने महिलओं से अकेले में बात कर सबका बयान लिया वहीं मौके पर पहूंची सीडीपीओ ओनम ने कहा कि पहले भी उनके द्वारा इसकी शिकायत की गई है। वहीं बीडीओं राम यशराम ने बताया कि पंचायत समिति की बैठक में प्रस्ताव पारीत कर इस संस्था से बचने की अपील लोगों से की गई थी।

सिविल सर्जन और डीईओ के आने से लोगों मंे जमा भरोसा

संस्था के समारोह में सिविल सर्जन सीपी गुप्ता तथा डीइओ के आने से लोगों में भरोसा जगी और लोगांे ने छूट कर पैसा लगा। संस्था कें कार्यालय में इन अधिकारियों की बड़ी बड़ी तस्वीर भी लगा कर रखी गई थी।


पुलिस ने नहीं की कार्यवाई।

इस सारे मामले में स्थानीय पदाधिकारियों की मिली भगत साफ सामने आती है और इससे पूर्व भी राष्टीय सहारा ने एक मात्र इस खबर को कई बार प्रकाशित किया पर पदाधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। कुछ पहले ही कुछ महिलओं ने थाने मंे लिखित रूप से शिकायत की कि इस तरह से उन्हें ठगा गया है पर पुलिस ने कार्यवाई नहीं की और माहिलओं को भी भगा दिया।

कहां कहां से केन्द्र

नाम         गांव         थाना      जिला राशि
सुधा कुमारी अकौना धोसी     जहानाबाद 8000
रूबी कुमारी सकरावां         अस्थावां     नालान्दा 7000
संजना कुमारी हरगांवां अस्थावां     नालान्दा 6500
विभा देवी        सामाचक         बरबीघा     शेखपुरा 7000
रेखा देवी        बेलवव बरबीघा     शेखपुरा 7000
ताराप्रविन        अकबरपुर अकबरपुर          नवादा 7000
लुसी कुमार काजीचक बाढ़          पटना 8000
पल्लवी कुमारी पियारे पुर सरमेरा नालन्दा 6000
संगीता देवी गोविन्द्र पुर फतुहा पटना 12000
अनीता कुमारी घोसैठ पिड़ी बाजार लक्खिसराय 4000
रिक्कू कुमारी गुलाबचक हिल्सा नालन्दा 5000

25 मई 2011

कन्या भ्रुण हत्या ----यह तो नायाब तरीका है?


जिसको देखों वही दूसरे को कोस रहा है। कोई नेताओं को तो कोई भ्रष्ट अधिकारियों को। आज एक संस्था ने कन्या भ्रुण हत्या का सर्वो दिया जिसके अनुसार जिसके पास एक बेटी है वह तब तक भ्रुण हत्या करवाता रहता है जब तक बेटा नहीं हो...

सवाल यह नहीं है कि समाज में यह सब क्यों हो रहा है। मेरे मन तो जो सवाल अन्ना के समय से ही उठ रहा है वह 

यह है कि जितने लोग दूसरे को कोस रहे है क्या उतने लोग भी ईमानदारी से ईमानदार है?

जो लोग कन्या भ्रुण हत्या को लेकर बारबार सवाल उठा रहें है उनमें से कितने है जो दहेज नहीं लेगे.....? या नहीं लिये होगें?

नेताओं को लेकर हमेशा सवाल खड़ा करने वाले समाज में हम अपनी तरफ क्यों नहीं देखते?

ताजा उदाहरण बाबा रामदेव की अनशन का है....बाबा जी अनशन करेगें पर उनके स्वाभिमान संध से जुड़े जिन तीन लोगों को मैं जानता हूं उनमें से एक चिकित्सका के पास प्रति दिन एक एक दर्जन भ्रुण हत्या होती है, दूसरे अब्बल दर्जे का करप्ट पत्रकार है और तीसरा भ्रष्ट बकील ? 

जय हो

दूसरे को बुरा कह कर हम अच्छा हो जाएगें...........यह तो नायाब तरीका है?

04 मई 2011

लादेन भारत में होता तो उसकी भी ठाठ होती उर्फ दिग्गदर्शी दिग्गी राजा।


भारत विश्व को शांति का संदेश देने वाला देश है और अमेरिका को उंगली कर दुनिया को थर्राने वाला ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद एक बार फिर से यह बात साबित हो गई। भारत सरकार के मुखीया के सर्वप्रिय नेता दिग्गी राजा ने एक बार फिर से शांति का संदेश दे दिया। दिग्गी राजा ने पाकिस्तान में  घुस  कर ओसामा के मारे जाने और लाश को संमुद्र में दफना दिये जाने का विरोध करते हुए कहा कि दुनिया को देखना चाहिए कि यह अमेरिका की दादागिरी है? मनवाधिकार का उल्लंधन है। चलो जब अमेरिका के डर से कोई खोंख भी नहीं रहा, कोई तो "बाप के लाल!" ने ऐसा हिम्मत किया।

हां दुनिया का कोई देश लादेन की शव को अपनी जमीन पर दफनाने यदि नहीं देता तो दिग्गी के घर में काफी जगह थी और वहीं उसकी समाधी बना का दिग्गी एक वोट बैंक के लॉकर बन जाते।

अब भला बताइए। यह भी कोई बात हुई, पाकिस्तान में घुंस कर लादेन को मार गिराया और समुंद्र में दफन कर दिया। भारत में यदि लादेन होता तो आमेरिका की औकात होती कि उसे मार गिराता? हां एक बात लादेन को करनी पड़ती, वह यह कि चुनाव के समय फतबा जारी कर कांग्रेस को वोट देना का, बस बन गई थी बात। पर लादेन की बुद्धि यहां तेल लेने चली गई। अजि यहां खुले आम मुंबई हमले में लोगों को मारने वाला कसाब और संसद पर हमला करने वाला अफजल दामादी ठाठ से रह रहा है तो भला बताइए लादेन की ठाठ कैसी होती?

अपना देश भी अपना है प्यारे? यहां बाटला हाउस में आतंकियों को मारने में शहीद होने पर इंस्पेक्टर को श्रद्धांजली देने के बजाया इस सवाल को लेकर हंगामा होने लगा कि मरने वाला आतंकी नहीं था सच भी है, यह सच भी हो सकता है आखिर दिग्य विजय होने के मायने भी तो कुछ होने चाहिऐं। अपने दिग्गी राजा दिग्गदर्शी भी है। एक बार नहीं कई बार यह बात साबित हो गई। करकरे को कसाब ने नहीं मारा और जितने भी सबूत है वह सब बेकार यह तो सिर्फ अंर्तयामी दिग्गी राजा जानते है कि करकरे का संधीयों ने मारा है। जय हो।

सो भईया लादेन यदि भारत में होता तो उसकी भी ठाठ होती और अपनी भी आखिर हम धर्मनिरपेक्ष देश है और धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या तो सोनिया मैडम ही बेहतर कर सकती है..... जय हो..

नोट- ‘‘बाप का लाल होना’’ मुहावरे का व्याख्या पाठक स्वंय करें। और यदि कोई विद्वतजन हो तो इसे वाक्य में बदले, बदले में उन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा।

21 अप्रैल 2011

पत्रकारिता आखिर किसके लिए..........? बिहार के पंचायत चुनाव में नशे में धुत्त पुलिस ने बबाल काटा। पत्रकारों पर तानी राइफल।


बिहार का पंचायत चुनाव बहुत ही संवेदनशील होता है इसलिए मीडिया के लोगों को भी इसके लिए सतर्क रहना पड़ता है। शेखपुरा जिला के शेखोपुरसराय प्रखण्ड के सात पंचायतों में कल चुनाव था इसलिए मैंने भी विषेश तैयारी की जिसके तहत कैमरे से लेकर गाड़ी तक को टंच कर लिया। गर्मी अधिक होने की वजह से मोटरसाईकिल की जगह सुमो गाड़ी का जुगाड़ एक रिश्तेदर के पास से किया।

लफरा उस समय ही हो गया जब बीबी जान गई की सुमो गाड़ी से चुनाव कवरेज के लिए जाना है और रात में ही उसकी नाराजगी झेलनी पड़ी और अहले सुबह मैंने भी ताव खाया और बिना चाय-नास्ता के ही घर से निकल गया। बीबी का गुस्सा भी वाजिव था, घर में सामान लाने कहो तो पैसा नहीं और आज गाड़ी से जाऐगें।

चलो बिना खाये पिये घर से निकल गया। घीरे घीरे सभी साथी रिर्पोटर एकजुट हुए और कवरेज का दौर चलने लगा। सुमो गाड़ी  लेने का मकसद आराम नहीं था, बल्कि लैपटैप से चलते हुए न्यूज भेजना था और यह आईडिया कारगर रहा और हमलोग बुथों से चैनलों को रिर्पोटिंग करने लगे।

इस बीच कहीं नास्ते का जुगाड़ भी नहीं हो सका, सभी दुकाने बंद थी। आर्यन के रिर्पोटर शैलेन्द्र के ननिहाल वहीं था मोहब्बतपुर पंचायत में और बारह बजे के बाद वहां भोजन की योजना बनी और उसने अपने ननिहाल को इसकी सूचना दी और हम लोग वहां चल दिये। उसके ननिहाल में भोजन बनने में अभी आधा धंटा बाकी था पर चाय और विस्कुट मिल गई।

हम लोग चाय पी ही रहे थे कि सूचना मिली की उसी गांव के बुथ संख्या तीन पर पुलिस जवान नषे में धुत्त होकर महिलाओं कें साथ बदसलूकी कर रहा है। हम तीन साथी वहां से निकले और रास्ते में ही एक दलान पर शराब पीते पुलिस का जवान दिख गया। मैं तुरंत उस तरफ गया और कैमरा जैसे ही ऑन करना चाहा, जवान ने राइफल तान कर सटा दी और बोला चलो कैमरा ऑन करो इधर टीगर दबाता हूं। मैं डर गया और जवान वहां से निकलने लगा। इसी बीच मैंने कैमरा ऑन कर लिया और मेरे एक साथी धर्मेन्द्र, टीवी 99 के रिर्पोटर ने कैमरा ऑन किया। जवान उसकी तरफ झपटा और उसको मैं कैमरे में कैद करता रहा। फिर जवान नशे में धुत्त होकर गलियों मे राइफल लहराता रहा। कई बार हम लोगों की तरफ भी तान दी पर हम लोग उसको कवर करते रहे।

फिर चैनल को इसकी खबर की, ब्रकिंग न्यूज चला। फोनो चला और पदाधिकारियों को इसकी सूचना मिली और सभी दनादना वहां आये पर किसी पदाधिकारी को जवान के पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी अन्त में कसार थाना प्रभारी रामविलास सिंह एवं डीएसपी संतोष कुमार उसे समझते हुए गाड़ी में बैठने की बात कही तो जवान भड़क गया और उनसे भी उलझ गया।

खैर किसी तरह यह हाइ बोल्टेज खेल खत्म हुआ। इस बीच भूख से हाल बेहाल था, गर्मी अपने शबाब पर थी पर किसी को खाने की याद नहीं रही। हमलोग वहां से भागे और लैपटौप की बैटी चार्ज करने का जुगाड़ एक विडियो हॉल में किया और वहीं से न्यूज भेजा।

यह सब करते कराते तीन  बज  गए और जब सभी साथी के चैनलों में दो दो फाइल न्यूज चला गया तब हम लोगों को खाने की याद आई पर जहां खाना बना हुआ था वहां अब जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी वह थोड़ी दूरी पर था, सो बाजार से किसी तरह सत्तू लाने की जुगाड़ लगाया पर वह भी नहीं मिला। इसी बीच दैनिक जागरण रिर्पोटर रामजनम सिंह आये और कहा कि खाना का जुगाड़ करबा देते है चलो सब। हमलोग चल दिये। उन्होंने एक घर मे ले जाकर बैठा दिया। करीब चार बज रहे था खाना आया, चने की दाल, चावल, अचार, सब्जी। इसी बीच हमलोगों को यह पता चल गया कि यह मुखीया प्रत्याशी का घर है। मैं परेशान हो गया। कई मुखीया प्रत्याषी ने खाने के इंतजाम करने की बात कही थी, मुर्गा खाना है कि मीट, पर मैंने मना कर दिया था। यह रिर्पोटर के लिए यह सब अच्छा नहीं होगा, पर यहां भूख ने इतना बेचैन कर दिया कि किसी बात कर ध्यान हीं नहीं रहा और हमलोग खाने पर टूट गये। इस बीच एक मित्र ने कहा भी कि किसलिए तुम लोग यह सब करते हो, आठ माह से चैनल ने पैसा नहीं दिया तब भी मरते हो।


अन्त में ऑफिस आया, अखबार में खबर भेजनी है पर देह काम नहीं कर रहा था। बदन दर्द से टूट रहा था। खैर खबर भेजते हुए रात के नै बज गए और जब घर आया तो बेहोष हो गया। जब होष आया तो देखा कि बीबी सर मे तेल ठंढा तेल लगा रही है। रात भर दर्द से सो नहीं सका। शरीर थक गया और यह हाल भूख की वजह से हुआ।

जवान के हंगामे के बीच हमलोग चर्चा कर रहे थे कि जवान यदि गोली चला देता तो क्या होता? एक मित्र ने कहा, होता क्या अखबार में एक कॉलम की खबर लगती, चैनल को एक बढ़ीया खबर मिल जाती और बाल बच्चा ढनक जाता और क्या................?


सुबह सोंच रहा हूं कि यह सब क्यों और किस लिए करता हूं। पता नहीं यह कैसा पागलपन है। एक जुनून है.......

10 अप्रैल 2011

मैं अन्ना हजारे के साथ खड़ा नहीं हो सका! जब मीडिया भ्रष्ट है तब कैसा विरोध?


अन्ना हजारे ने जबसे अनशन पर बैठने की घोषणा की थी तबसे लगातार मेरे मन में उनके साथ होने की बात उठती रही और मैं कभी अपने शहर में  ही अनशन करने अथवा कभी मशाल जुलूस निकालने की बात सोचता रहा पर ऐसा कर न सका। मन में बार बार एक ही सवाल उठता रहा और किसी एक कोने से यह आवाज आती रही कि पहले अपने भ्रष्टाचार को खत्म करो फिर अन्ना का साथ दो और मैं उस समय जब पूरा देश अन्ना के साथ खड़ा था, मैं खड़ा नहीं हो सका।

सबसे पहले मैं मीडिया  की बात करता हूं जिसके भ्रष्टाचार का मैं विरोध भी नहीं सकता।मीडिया से जुड़े रर्पोटरों का जो हाल है वह सभी जानते है। सबसे पहले जिस चैनल के लिए मैं रिर्पोटिंग करता हूं उसके भ्रष्टाचार की बात कर लूं। साधना न्यूज चैनल से जबसे जुड़ा हूं कभी भी एकरार के अनुसार प्रति खबर 450 रू. नहीं दिया गया। जो मन हुआ वह चेक बना कर भेज दिया जाता है कभी चार महिने पर पांच हजार तो कभी आठ हजार। जबकि प्रति माह पच्चीस से तीस खबर भेजता हूँ और वह चलती भी है। जब कभी भी इस संबंध में जानकारी चाही तो टाल माटोल वाला जबाब मिलता है। अब तो पिछले आठ माह से एक भी पैसा नहीं दिया गया जबकि चैनल के ग्रुप एडिटर एन के सिंह शशिरंजन के चैनल छोड़ने के बाद पटना में बैठक कर इस बात से अवगत हुए और आश्वासन दिया कि आगे से ऐसा नहीं होगा पर उनके आश्वासन के कई माह बीत गए। 

यह हाल बहुतों न्यूज चैनलों का है। मेरे साथ कई साथी चैनलों से जुडे़ जिसमें इंडिया न्यूज से राहुल कुमार, ताजा न्यूज, युएनआई से संजीत तिवारी, आर्यन न्यूज से शैलेन्द्र पाण्डेय, टीवी 99, न्यूज 24 से धर्मेन्द्र कुमार, न्यूज वन से फैजी का नाम शामिल है पर किसी को भी कभी नियमित और निर्धारित राशि नहीं मिलती। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। 

और मैं रोज रोज रिर्पोटरों को बसूली करते देखता हूं और चुप रहता हूं आखिर यह भी तो भ्रष्टाचार ही है।

उसी तरह समाचार पत्रों की बात करू तो स्तरीय पत्रों के द्वारा संवाददाताओं को 10 रू. प्रति समाचार दिया जाता है जबकि एक समाचार के संकलन के लिए जाने आने में इससे अधिक का खर्चा हो जाता है। उस पर भी विज्ञापन का भारी दबाब। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। लगता है जैसे संवाददाताओं को मीडिया हाउस के लोग अप्रत्यक्ष रूप से यह कह कर भेजते है कि जाओं और कमाओ।


मीडिया हाउस से पैसा नहीं मिलने पर किस तरह से लोग छटपटातें है इसे मैं रोज महसूस करता हूं। विकल्प क्या बचता है। विकल्प है न और कुछ लोग उसे चुन भी लिया है जिसके तहत किसी के मौत की खबर कवर करने के लिए जाने पर भी आने जाने का खर्चा पानी के रूप में नकदी मांगी जाती है। शर्म से गड़ जाता हूं जब घर में आग लगने से जहां दो लोगों की मौत हो जाती है और इसकी खबर मुखीया के द्वारा पत्रकारों को दी जाती है पर पत्रकार खर्चा पानी का इकरार करा लेता है और वहीं समाचार बनाने के बाद मुखीया की बाइट ली जाती है और मुखीया से खर्चा पानी भी।

रोज रोज विज्ञापन के लोभ में सचाई की आवाज नहीं बन पाता हूँ और झूठ को दबा देता हूं क्योकि ऐसा करने वाला विज्ञापन दाता है और यह काम कौन मिडीयावाज नहीं करता?

इससे इतर भी कई तरह के भ्रष्टाचार में मैं रोज रोज शामिल होता है जिसमें से कुछ यहां लिखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा हूं। 

तब भला कैसे अन्ना के साथ खड़ा हो पाता?

और कितने लोग है जो कह सके कि राजा की तरह मौका मिले तो अरबों को धोटाला नहीं करेगें।

ईशा की बात मेरे मन में हमेशा घूमती रही कि पहला पत्थर वही मारे जिसने कभी पाप नहीं किया?

हां एक बात अब आप लोग भी मत कह देना, तब छोड़ क्यों नहीं देते ,  क्योंकि इसका जबाब है मेरे पास। मैं भी नशेबाज हूं और जैसे लोग शराब और गुटखे पर हजारों खर्चतें है मैं इन सब चीजों का सेवन नहीं करता ओर वचत कर पत्रकारिता पर खर्चता हूं बाकि कहने को आप स्वतंत्र है।

02 अप्रैल 2011

कतर से आये मेरे दोस्त शाहीद का एक नायब तोहफा।




यह एक नायाब तोहफा है जो मेरे दोस्त मो. शाहीद हसन ने खाड़ी के देश ‘‘कतर’’ से लाया है। नहीं यह महज एक मामुली सा चाबी रिंग नहीं है। यह इजहारे मोहब्बत का एक ऐसा नमूना है जिसने दिल को बाग-बाग कर दिया। 

मो. शाहीद हसन उर्फ पुटटू ने यह तोहफा कतर से खास अपने दोस्तों के लिए लाया है जिसमें अपने नाम के साथ अपने दोस्तों का नाम लगाया है। जब से यह तोहफा मिला है पता नहीं क्यों मैं बार बार इसे देखता  है  और कई तरह के सवाल मन को हिलकोर दे रही है। वेशक यह सवाल धर्म की है, राजनीति की है, जाति की है, नफरत की है और मोहब्बत की भी।

बेशक यह एक छोटा सा तोहफा है पर इसके अन्दर की भावनाओं को समझा जा सकता है। मेरे दोस्तों में कई मुस्लिम है जिनके साथ मेरा अपनापा है। इन अपनापों के बीच कई बार हिंदू मुस्लिम के नफरत की आग देश में लगी पर अपनापा और बढ़ता ही गया। इससे पहले मैंने एक आलेख लिखा था जिसमें मुस्लिम समाज के प्रति कुछ तल्ख टिप्पणी थी और उसका वाजिव तर्क भी था और आज भी एक वाजिव तर्क है मुस्लिम समाज के उदार होने का, उसके मोहब्बत का।

शाहीद हसन के अब्बा जान के देहान्त की वह घटना जब वह उस समय भी खाड़ी के देश में अपने परिवार के लिए नौकरी कर रहा था और इधर उसके अब्बा का जनाजा निकलना था। शाहीद के बड़े भईया साजिद हसन उर्फ बब्लू भैया ने हमलोंगों को खबर की और हमलोग तीन चार दोस्त उसके घर पर पहुंचे। पुटटू की कमी नहीं खले  इस लिए हमलोगों ने जनाजे को कंधा दिया। जनाजे के साथ साथ हमलोग फैजाबाद मोहल्ले में स्थित मस्जिद में रूके और नमाजे जनाज में भाग लिया। इतना ही नहीं मौलबी के द्वारा बोले गये शब्दों को दुहराया। यानि नमाज अदा की और फिर कब्रिस्तान में जाकर अब्बा को मिट्टी दी।

ईद का त्योहार मेरे लिये भी खास ही होती है और हम सभी साथी ईद के दिन जो उधम मचाते है और खाने को लेकर छीना छपटि होती है वह यादगार है।

साथ ही मैं यह भी साफ कर दूं कि पुटटू हीं नहीं कई अन्य साथी जिसमें मो. युनूस, मो. तनवीर खान शामिल है छठ पर्व पर मेरे घर आकर अथवा छठ घाट पर जाकर प्रसाद ग्रहण करता है। हिंदू धर्म में छठ का अपना ही एक स्थान है और उसके खरना दिन जो प्रसाद बनाता है उसे पवित्र माना जाता है पर उस प्रसाद को भी सभी दोस्त मिल कर ग्रहण करते है और मेरी मां का आर्शीवाद भी लिया जाता है।

कोई भी शादी हो या त्योहार हम लोग साथ साथ मनाते है नहीं लगता है कि हम लोग अलग है। 

कई बातें याद आ जाती है, जब सोंचता हूं। कोई भी समाज भला बुरा हो सकता है पर आदमी, आदमी होता है और इसका संबंध किसी समाज, किसी धर्म और किसी जाति से नहीं होकर आदमी से है।

01 अप्रैल 2011

काश की मैं मुर्ख होता........



काश की मैं मुर्ख  होता!

फटी जेब और टूटा नारा,
पैजामा का करे बेचारा,
होती गठरी खाली तो फिर क्या खोता?
काश की मैं मुर्ख  होता!

विद्धानों की महफिल में
आंख, कान, मुंह (नाक नहीं)
बंद कर रोता,
विद्वतजन कहलानें को 
कम से कम कांटा तो न बोता?
काश की मैं मुर्ख  होता!

न होती कोई भाषा,
न होता कोई मकसद,
न होता कोई देश,
न होती कोई सरहद,
न बनता अणु-परमाणु,
न सजती अपनी तबाही।
अपनों के लहू से धरती का आंचल नहीं भिंगोता? 
काश की मैं मुर्ख  होता!


खग ही जाने खग की भाषा,
हाथ न आता कभी निराशा,
नहीं ऐश्वर्या, नहीं नताशा,
नहीं मलाई, नहीं बताशा,
जाति-धर्म का नहीं तमाशा।
तकिये को पैरों तर रख कर,
घोड़ा बेचकर सोता।
काश की मैं मुर्ख  होता!


बीबी से डरता,
प्रेमिका पे मरता,
अपनी खाली कर, औरों की जेब भरता।
अपनी उपेक्षा पर न कभी सुर्ख  होता?

काश की मैं मुर्ख  होता!

काश की मैं मुर्ख  होता!
काश की मैं मुर्ख  होता!

काश की मैं मुर्ख  होता!


चित्र गूगल से साभार 

26 मार्च 2011

छोटी छोटी बड़ी बातें। ----- इस्लाम में खुदा के अलावे किसी के आगे सर झुकाने की मनाही।


मौका था बिहार दिवस पर पुरस्कार वितरण का। तेलकार मध्य विद्यालय में पुरस्कार वितरण के रूप में अव्वल आये बच्चों के बीच पुरस्कार का वितरण किया जा रहा था। सभी बच्चे पुरस्कार प्राप्त कर शिक्षकों का अर्शीवाद लेने के लिए पैर छू कर उन्हें प्रणाम कर रहे थे। सिलसिला चल रहा था तभी एक वाकया ने अचम्भित कर दिया। 

  विद्यालय के प्रधानाध्यापक अनील सिंह ने पुरस्कार लेने के लिए पुकार लगाई दिलशान कुमार। दिलशान नाम का बारह-चौदह साल का लड़का पुरस्कार लेने के लिए आया और पुरस्कार ग्रहण कर उसने प्रधानाध्यापक को प्रणाम करने की जगह हाथ मिलने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया। मैं भी वहीं था बोल पड़ा, अरे यह क्या करते हो  प्रणाम करो। पर उसने प्रणाम करने के बजाय लगभग जबरन प्रधानाध्यापक से हाथ मिलाई और किसी को प्रणाम किये बगैर ही चला गया।

मैं बोला, ‘‘नया जनरेशन है शायद इसलिए।’’ 

पर नहीं वहीं बगल मे बैठे शिक्षक मोहम्मद कलीम ने तुरंत जबाब दिया. 

‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है इस्लाम में खुदा के अलावा किसी के सामने झुकने की मनाही।’’

 मैं स्तब्ध रह गया। यह कैसा धर्म है? उस दिन से लेकर आज तक यह बात दिमाग से नहीं निकल रही है। 

कबीर दास ने कहा है कि 

गुरू गोबिंद दोउ खड़े, काके लागूं पांव।
बलिहारी गुरू आपनो गोबिंद दियो बताया।।

अर्थात ईश्वर से पहले हम गुरू को प्रमाण करते है क्योकि  ईश्वर के बारे मे मुझे वही बताते है। 

कबीर दास इससे भी एक कदम आगे निकल कर कहते है कि

बलिहारी गुरू आपनो, घड़ी घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।।

कबीर दास कहते है कि गुरू तो धन्य है जिन्होने हम जैसे मनुष्य को छोटे से प्रयास से देवता बना दिया।

फिर आगे बढ़ते हुए कबीर दास कहते है 

कबीरा ते नर अंध है, गुरू को कहते और।
हरि रूठे गुरू ठौर है, गुरू रूठै नहीं ठौर।। 

अर्थात गुरू का स्थान ईश्वर से उपर है यदि ईश्वर रूठ जाये तो गुरू के यहां ठिकाना मिल जाएगा पर यदि गुरू रूठ गए तो कहीं ठिकाना नहीं मिलेगा।

फिर कबीर दास ने कहा कि 

राम रहे वन भीतरे गुरू की पूजी ना आस।
कहे कबीर पाखण्ड सब झूठे सदा निराश।।

अर्थात ईश्वर कहां है यह  गुरू के बिना ही यदि कोई कहता है कि मैने जान लिया तो यह पाखण्ड है।

कबीर दास से मेरा आशय महज इतना है कि लोग इसपर भी धर्म की आड़ लेकर विवाद न खड़ा न करे और  असल मुददे से भटक जाए। असल मुददा यह है कि गुरू का स्थान ईश्वर से पहले है या नहीं?

बचपन से आज तक हमने भी यही सीखा है पर इस्लाम की कट्टरता का इस घटना से जोड़ कर देखने पर बरबस ही विवश हो जा रहा हूं। मन तो मेरा तब भी बेचैन होता है जब छोटे छोटे बच्चों के हाथों में  क ख ग और ए बी सी डी की किताब की जगह धर्मोपदेश की किताब होती है।

मैं समझता हूं की धर्म को स्वतंत्र होना चाहिए। बच्चे का धर्म क्या है यह हम क्यांे बताए। खोजने दिजिए उसे उसका अपना अपना धर्म। और सबसे बढ़कर यह की बड़ों के आगे सर झुकाने का मतलब होता है अपने अहंकार को तिरोहित करना। तब क्या इस्लाम अहंकारी बनाता है?

19 मार्च 2011

होली मंगलमय हो





होली मंगलमय हो

रंग गुलाल उड़े जीवन में
बहुरंगी जीवन का हर पल हो
होली मंगलमय हो।

सतरंगी हो घर आंगन 
जीवन रण ने जय हो
होली मंगलमय हो।

भर पिचकारी खुशियां बांटों
कहीं न कोई भय हो
होली मंगलमय हो।

राग द्वेष को दिल से भुलाकर
प्रेम प्रकाश का दीप जलाकर
जग भाईचारा मय हो
होली मंगलमय हो।
होली मंगलमय हो।
होली मंगलमय हो।