31 दिसंबर 2010

कांग्रेसी सरकार (क्षणिकाऐं)

क्षणिकाऐं

1
डी राजा

मनमोहन, सोनीया औ करूणा की निधी है राजा?
गैर सरकारी खजाने को भरने की विधी है राजा?

2
प्रणव मुखर्जी

मैडम जी
विपक्ष से संसद नहीं चलने पर माफी मंगवाना है

क्योंकि
मैडम

उल्टे चोर के कोतवाल को डांटने का जमाना है!

3
कांग्रेसी सरकार

आर्दश, स्पेक्टरम और कॉमनबेल्थ
घोटालों की बैंड बजाएगें,

आतंकवाद को धर्म की चासनी में डुबो
चाव से चवाएगें।

ज्यादा चूं चपड़ किया तो
तुमको भी इसमें फंसाएगे।

30 दिसंबर 2010

शेखपुरा.... चोरी का नायब तरीका पहले दोस्ती फिर अपने को अधिकारी बना अपनी गाड़ी में बैठा का लूटते है। अर्न्तराज्यीय गिरोह का तीन शातीर घराया। नशाखुरानी पर कसे सिंकजे पर शातीर ने अपना नायब तरीका अल्टो गाड़ी से देते है लूट को अंजाम।

इस चेहरे को ध्यान से पहचान लिजिए। गौर से देखिए। जेनटल मैन दिखने वाले ये लोग शातीर चोर है और कहीं भी  आपसे दोस्ती गांठ कर आपको लूट सकते है।

सावधान हो जाइए

बैंक अधिकारी बन  आपको घर तक अल्टो से छोड़ने का का झांसा देकर बनाता है लूट का शिकार।

जी हां जिले में लूट का शिकार बनाने का एक नया तरीका सामने आया है। ऐस तरीका जिसमें पहले रेलयात्री बन रणजीत कुमार पहले लक्खीसराय निवासी इंद्रदेव  तांती से दोस्ती की फिर उसे बताया कि शेखपुरा की सभी सड़क का जाम कर दिया गया है और इसका कारण बताया की कुख्यात शातीर अपराधी अशोक महतो के द्वारा पुलिस जीप को फुंक दिया गया है जिससे ऐसा हुआ है। फिर जब इंद्रदेव घर की समस्या बताता है तो रणजीत कहता है  िकवह एक बैंक अधिकारी है और वह भी उसी तरफ जा रहा है जिधर उसका घर है और उसको लेने के लिए उसके दोस्त अल्टो गाड़ी से आये हुए है। फिर क्या था उजैन से कमाई कर लौट रहे इंद्रदेव उसके साथ अल्टो गाड़ी पर सवार हो गया। फिर रणजीत उससे कहता है कि उसके बैग में पैंतिस हजार रूप्या हे और उसे वह बैंक में ही जमा कराने जा रहा है और इसके बाद इंद्रदेव ने भी बता दिया कि उसके सुटकेस में 9000 रू. है और फिर थोड़ी देर में अल्टो गाड़ी को रोका गया और इंद्रदेव को थोड़ी देर के लिए उतर जाने के लिए कहा गया और साथ ही उसे अपना बैग जिसमें 35000 रू. रखा था उसे रखने के लिए दिया और उसकी अटैची गाड़ी में रखा और फिर गाड़ी बढ़ा दी।

और फिर जब इंद्रदेव में बैग खोल कर देखा तो उसमें बेकार कपड़े थे। फिर उसे लूट जाने का एहसास हुआ तथा फिर चिल्लाना शुरू किया और इसी क्रम में स्थानीय लोगों की पहल पर रास्ते में पड़ने वाली सिरारी ओपी पुलिस को इसकी सूचना दी और रास्ते में चोर गिरोह को पकड़ा गया।

मामले में बक्तीयारपुर निवासी रणजीत कुमार, तथा वहीं का कपील पासवान एवं बाढ़ निवासी चालक रवि पासवान को गिरफ्तार किया गया।

गिरफ्तार चोरों ने इस तरह के नायाब चोरी की बात स्वीकार की तथा कहा कि वह घूम घूम कर इसी तरह से लोगों को दोस्ती कर फंसाता है और उसे लूटता है। वे लोग बिहार के कई जिलों से लेकर उत्तर प्रदेष के कई रेलवे स्टेशन पर इस घटना को अंजाम देता है। यह लोग ऋसीकेष में भी एक बार इस तरह के मामले में पकड़ा जा चुका है और जमानत पर छूट कर फिर दूसरी जगह इस तरह का काम करता है। 

ये लोग इतने शातीर है कि एक जगह एक से दो बार ही इस तरह की घटना को अंजाम देते है।

शानदार अल्टो गाड़ी से लूट को अंजाम देने वालों ने बताया कि पहले नशाखुरानी का काम करते थे पर आब उसमें कड़ाई हो गई है तो इस तरह की नायाब चोरी करता है।

चिकित्सा जगत के लिये अजुबा बना है। युवक के ऑखों से निकल रहा है कीड़ा। रिसर्च के लिये वीरायतन एवं पटना आर्युविज्ञान संस्थान भेजा गया।

शेखपुरा जिले के करिहो गॉव निवासी 28 वर्षीय युवक नंदेलाल यादव के ऑखों की बॉये पुतली से लगातार कीड़ा निकल रहा है। जिससे ऑखों के चिकित्सक इस अजीबो-गरीब घटना से भी आश्चर्य चकित है। यह वाक्या शहर के जमालपुर रोड स्थित जीवन-ज्योति ऑख अस्पताल में इलाज के  भर्ती हुए मरीज नंदेलाल के साथ घटित हुआ है। जिससे इलाज के लिए भरती हुआ मरीज सहमें है। पिछले 12 घंटों के दरम्यान जीवन ज्योति ऑख अस्पताल के आई स्पेस्लिस्ट डा0 राकेश रंजन अब तक 40 कीड़े निकाल  चुके है। इस बाबत ऑख अस्पताल में ईलाज करा रहे युवक ने बताया कि वह मजदूरी कर अपनी पत्नी और बच्चों का पेट पाल रहा है। पिछले छहमाह से बॉये ऑख में खुजली होती थी। तब ऑखों को हाथ से ही रगड़कर ठीक कर लेता था। बीच में जब कभी खुजलाहट होती थी तो दवा दूकानदार से पूछकर आई ड्राप ले लेता था।

    मंगलवार की संध्या जब ऑखों की जलन बढ़ी तो अस्पताल में आये। अलग-अलग जॉच के बाद उसके ऑख में बड़ी तादाद में कीड़ा पाया गया। नंदेलाला ने बताया कि अब तक डाक्टर द्वारा उसके ऑख से 40 जीवित कीड़ा निकाला जा चुका है। अब डाक्टर साहब द्वारा बेहतर ईलाज के लिए विरायतन भेजा जा रहा है। इस बाबत नंदेलाल की ऑख की इलाज कर रहे डा0 राकेश रंजन सने बताया कि नंदेलाल द्वारा गंदे पदार्थ का भोजन करने के कारण उसके शरीर में कीड़ा फैल कर खुन के जरिये ऑखों के स्लेक्टा में जमा हो गया है। उसकी ऑखों से निकल रहे कीड़े शौच के साथ निकलने वाला उजला कीड़ा है। लेकिन नंदेलाल के ऑखों तक पहुॅचना अजीबोगरीब वाक्या है। इसके रिसर्च के लिए वीरायतन या पटना आयुर्विज्ञान संस्थान भेजा सजा रहा है। डा0 राकेश रंजन ने बताया कि नंदेलाल को फिलहाल बीटाडीन आई ड्राप, मैक्सी टेबलेट एवं प्रोक्साडीन दवा दिया गया है। जिससे निकल रहा कीड़ा मरा हुआ निकल रहा है।  

27 दिसंबर 2010

वृद्धापेंशन की राशि निकासने गये वृद्ध हो रहे ठगी का शिकार...... 10 रू. में बिक रहा निकासी फॉर्म

बरबीघा पोस्ट ऑफिस में असहायों को मिलने वाली सरकारी सहायता राशि को भी लूटने में कई लोग लग जाते है और इसमें पोस्ट मास्टर का भी सहयोग होता है। बड़े ही शातिराना तरीके पोस्ट आफिस के द्वारा इस खेल को अंजाम दिया जा रहा है। बृद्धापेंशन की राशि निकालने जब बृद्ध लोग आते है तो उन्हें निकासी फॉर्म नहीं दिया जाता है और निकासी फॉर्म पोस्ट आफिस के बगल में ही एक पान दुकान में बिकता है। निकासी फॉर्म के बदले पान दुकानदार सभी बृद्ध लोगों से प्रति पास बुक बीस से दस रू. बसूलता है। लाचर और बेबस लोगों की मदद करने तो कोई आगे नहीं आता है पर उसके पैसे को ऐंठने का तरह तरह का तरीका निकाल लिया जाता है। इतना ही नहीं पोस्ट ऑफिस का पास बुक भर कर पान दुकान में ही जमा हो जाता है और दो दिन बाद पैसा लेने के लिए आने की बात कही जाती है। पान दुकानदार ही नहीं कई अन्य लोग भी कैंप्स के अंदर दस दस रू. बसूल कर लाचार बुढ़े लोगों से निकासी फार्म के नाम पर उगाही करते है।


इस संबंध में नाराणपुर निवासी श्रीदेवी नामक बृद्धा महिला इस 10 रू. के लिए बेचारगी दर्शाते हुए कहती है कि वह कर्जा ला कर 20 रू. दिया है। भला सोचिए सरकार ने जिस बेबसी को ध्यान में रख कर बुजूर्गो को मदद के लिए 200 प्रति माह की राशि वृद्धापेंशन के रूप में दी है उसमें भी बसूली मानवीय संवेदना को झकझोरने वाला कदम है कि नहीं।

हलांकि इस संबंध में पोस्ट मास्टर श्रवण सिंह ने कहा कि उनको इसकी जानकारी नहीं है और ऐसा किया जा रहा है तो इसपर कार्यवाई होगी। इसी संबंध में जब जिला डाक निरीक्षक सें संपर्क किया गया तो उन्होने जांच कर इसपर कार्यवाई की बात कही।

25 दिसंबर 2010

विनायक सेन को समर्पित मेरी कविता (राजद्रोह)











राजद्रोह है 
हक की बात करना।


राजद्रोह है
गरीबों की आवाज बनाना।


खामोश रहो अब
चुपचाप
जब कोई मर जाय भूख से 
या पुलिस की गोली से
खामोश रहो।


अब दूर किसी झोपड़ी में
किसी के रोने की आवाज मत सूनना
चुप रहो अब।


बर्दास्त नहीं होता
तो
मार दो जमीर को
कानों में डाल लो पिघला कर शीशा।


मत बोलो 
राजा ने कैसे करोड़ों मुंह का निवाला कैसे छीना,
क्या किया कलमाड़ी ने।


मत बोला, 
कैसे भूख से मरता है आदमी
और कैसे
गोदामों में सड़ती है अनाज।


मत बोलो,
अफजल और कसाब के बारे में।
और यह भी की 
किसने मारा आजाद को।


वरना


विनायक सेन
और 
सान्याल की तरह
तुम भी साबित हो जाओगे 
राजद्रोही


राजद्रोही।




पर एक बात है।
अब हम
आन शान सू 
और लूयी जियाबाओ 
को लेकर दूसरों की तरफ
उंगली नहीं उठा सकेगें।

22 दिसंबर 2010

शाकाहारी गिद्ध

आज कल घरती पर उड़ने वाले गिद्ध
हर जगह रहते है।
आज ही तो
आइसक्रीम बेच रहे नन्हें चुहवा पर
चलाया था ``चंगुरा´´
गाल पर पंजे का निशान उग आये
कांंग्रेस पार्टी की सेम्बुल की तरह
बक्क!
आंखों में भर आया
``लाल लहू´´,
पर,
निरर्थक,
वाम आन्दोलनों की तरह।

कल ही रेलगाड़ी में भुंजा बेच रहे मल्हूआ पर
खाकी गिद्ध ने मारा झपट्टा,
बचने के प्रयास में आ गया वह पहिये के नीचे,
सैकड़ों हिस्सों में बंट गया मल्हूआ,
शाकाहारी गिद्धों के हिस्से आया एक एक टुकड़ा।

अब तो हर जगह दिखाई देते है गिद्ध,
कहीं भगवा,
तो
कहीं जेहादी बन कर
टांग देते है अपनी कथित धर्म की धोती खोलकर
अपने ही बहन-बेटी के माथे पर
और फिर नोच लेते है उसकी देह
भूखे गिद्धों की तरह।

गांव से लेकर शहर तक पाये जाते है
शाकाहारी गिद्ध...।

18 दिसंबर 2010

हिन्दु-मुस्लिम साथ-साथ मनाते है मोहर्रम। साथ सजाते हैं ताजीया। साथ खेलते है लाठी।



राजनीतिक पूर्वाग्रह से दूर गॉवों में आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द की मिशाल देखने को मिल जाती है। ऐसा ही सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक बन कर सामने आता है मोहर्रम का  त्योहार ब्रहमपुरा गॉव में। इस गॉव हिन्दुओं द्वारा चंदा दिया जाता है और मिलजुल कर तजीया (सीपल) सजाया जाता है और फिर साथ-साथ मिलकर मुहर्रम जुलूस में या अली, या अली के नारों के बीच लाठियॉ खेली जाती है।

ब्रहमपुरा गॉव के महावीर चौधरी, नवल पासवान, मो0 अनवर, मो0 फेकू सहित कई अन्य लोग आज मोहर्रम जूलूस में साथ-साथ लाठी खेल रहें हैं। सियारात की चालों से इतर ये लोग सौहार्द और भाईचारे की मिशाल पेश करते हैं। वकौल महाबीर चौधरी उनके पूर्वज ही इस ताजीया को सजाते आ रहे है और यह परम्परा 100 साल से अधिक समय से चली आ रही है। हिन्दूओं द्वारा ताजीया जूलूस निकालने के इस परम्परा के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए मो0 मोइज ने बताया कि ब्रहमपुरा में चुंकि मुस्लमानों की संख्या कम है इसलिए गॉव के बुजूर्गों के द्वारा साथ-साथ मोहर्रम मनाने की परम्परा बनी जो आज तक चल रही है।
मो0 अब्बास इसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं देखते और उनकी माने तो ईश्वर एक है भले ही पूजा करने की विधि अलग-अलग। ग्रामीण विलास यादव कहते है कि जबसे होश सम्भाला है ताजीया जुलूस में लाठी खेल रहे है अब तो यह लगता ही नहीं कि यह अपना त्योहार नहीं ।
गॉवों की दशकों पुरानी यह परम्परा वीकीलीक्स के खुलासे बाद धर्म की राजनीति करने वालों और आतंकवाद में राजनीति करते हुए उसमें रंग तलाशने वालों के गालों पर एक करारा तमाचा है।

प्रेम की परिभाषा


प्रेम

समर्पण का एक अन्तहीन सिलसिला

आशाओं

आकांक्षाओं

और भविष्य के सपनों को तिरोहित कर

पाना एक एहसास

और तलाशना उसी में अपनी जिन्दगी.....

.

16 दिसंबर 2010

एक मां....





वमुिश्कल अपने मालिक से
आरजू-मिन्नत कर
जुटा पाई अपने बच्चे के लिए 
एक अदद कपड़ा।

मेले में बच्चे की जिदद ने
मां को बना दिया है निष्ठुर।

बच्चे की लाख जिद्द पर भी
नहीं खरीद सकी एक भी खिलौना।

देवी मां की हर प्रतिमा के आगे
हाथ जोड़ 
सालों से कर रही है प्रर्थना 
एक मां.....

14 दिसंबर 2010

पुरानी फाइलों को उलटते कलटते पांच साल पूर्व कागज के टुकड़ों पर लिखे दिल की बात के कुछ पन्ने मिल गए, सोंचा आपसे सांझा कर लूं, पेश है-

इसे संयोग कहे या दुर्योग, आज दो वाक्या एक सा घटी। प्रथम हिंन्दी दैनक ‘‘आज’’ में मेरे द्वारा गेसिंग (जुआ) के अवैध धंधे से संबन्धित समाचार जिसमें हमने बरबीघा नगर पंचायत के प्रतिनिधियों का इस धंधें में संलिप्त रहने की बात उजागर की थी, को लेकर नगर पंचायत अध्यक्ष अजय कुमार द्वारा तिव्र प्रतिरोध दर्ज किया गया और मुकदमा करने से लेकर पत्रकारिता की सीमाओं (उनके द्वारा व्यवस्था का विरोध न करना ही पत्रकारिता है) का ज्ञान भी कराया गया। मैं भी भीर गया बहस हुई।

दूसरा वाकया साहित्यिक पत्रिका पुनर्नावा में हिंदी जगत के प्रमुख हस्ताक्षर और कवि-पत्रकार स्व. नरेन्द्र मोहन की कविता पढ़ी जो निम्नवत थी.....

एक सवाल
जो मेरा मन मुझसे
नित्य पूछता
मुझे ही
जांचता, परखता

वह है-
विवशताओं से बंधी
लट्टू सी धूमती यह बंजर
जिंदगी
है किस काम की?
-यह जिंदगी

कठपुतली?


बहुत देर तक मौन सोचता रहा। कठपुतली? मानवेत्तर गुणों में हो रे चातुर्दिक गिरावट क्या इस बात का द्योतक नहीं कि आज के समाज में जिवित आदमी के लिए स्थान नहीं। सच, विवशताओं में बंधी हर आदमी की जिन्दगी एक बंजर जमीन है। तब प्रश्न यह भी अनुत्तरित रह जाती है कि बंजर जिंदगी भला है किस काम की?

फिर एक और कविता कवि शिवओम अंबर की पढ़ी

अपमानित होकर के भी मुसकाना पड़ता है,
इस वस्ती में राजहंस के वंशज को यारों
काकवंश की प्रशस्तियों को गाना पड़ता है।

स्याह सियासत लिखती है
खाते संधर्षों के,
कोना फटा लिए मिलते हैं
खत आदर्शो के।

सबकुछ जान बूझ कर चुप रज जाना पड़ता है
इस वस्ती में विवश बृहस्पति की मृगछाला को
इन्द्रासन से तालमेल बैठाना पड़ता है।
काकवंश की प्रशस्तियों को गाना पड़ता है।

जुगनू सूरज को प्रकाश का अर्थ बताते है,
यहां दिग्भ्रमित, पंथ-प्रदर्शक माने जाते है।
हर जुलूस में जैकारा बुलवाना पड़ता है।
काकवंश की प्रशस्तियों को गाना पड़ता है।

इस वस्ती में उंचाई मिलती तो है लेकिन
खुद अपनी नजरों में ही गिर जाना पड़ता है।
काकवंश की प्रशस्तियों को गाना पड़ता है।

और फिर उठखड़ा हुआ मैं सतत अपनी चाल में चलने के लिए..... सफर अभी जारी है।

13 दिसंबर 2010

कि फिर आऐगी सुबह

हर सुबह एक नई उम्मीद लाती है

खब्बो से निकाल

हमको जगाती है


अब शाम ढले तो उदास मत होना

उम्मीदों कों सिरहाने रखकर तुम चैन से सोना

कि फिर आऐगी सुबह

हमको जगाऐगी सुबह

रास्ते बताऐगी सुबह

उम्मीदों कें सफर को मंजिल तक पहूंचाऐगी सुबह................. 

12 दिसंबर 2010

कसाब की भाषा बोल रही कांग्रेस के पीछे कहीं पाकिस्तानी साजीश तो नहीं ?


दिग्विजय सिंह का बयान कि हेमंत करकरे को हिंदु आतंकवादियों ने मारा देशद्रोह से कम नहीं। पर दिग्विजय सिंह के इस बयान को उनके व्यक्तिगत बयान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह कांग्रेस के द्वारा प्रायोजित है। दग्विजय सिंह के बयान के बाद शहीद हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने यह कह कर साफ कर दिया कि उनके पति को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मारा  और हिंदू संगठनों से इसे जोड़कर देखना पाकिस्तान की मदद करने के समान है।

अब आइये कांग्रेस के कसाब-अफजल प्रेम प्रकरण पर। अफजल गुरू और कसाब कांग्रेसी मेहमान तब है, जबकि उन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। हाल ही में कसाब का यह कहना कि मुंबई हमले में मैं नहीं था और पुलिस ने मुझे झूठा फंसाया है और दग्विजय सिंह का यह बयान कि करकरे को हिन्दू संगठनों ने मारा एक भी भाषा नहीं है?

आखिर क्यों कसाब हमारा मेहमान है और उसके उपर हम 15 लाख प्रतिदिन खर्चते है? 

क्या दग्विजय के मूंह से कांग्रेस कसाब की बोली नहीं बोल रही?


यह महज वोट बैंक की राजनीति नहीं है। यह देशद्रोह है और पाकिस्तान को फायदा पहूंचाने का कांग्रेसी चेहरा साफ दिख रहा है।

अभी हाल ही में पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले अखबारों ने विकिलिक्स के हवाले से यह खुलासा किया कि भारत पाकिस्तान में आतंकबाद फैला रहा है पर बाद में यह खबर गलत निकली और अखबारों ने माफी मांगी, और यह कांग्रेस के नेता पाकिस्तान के इस साजिश पर मुहर लगाते है की आतंकवाद का पैरोकार भारत है पाकिस्तान नहीं। यह एक बार नहीं हो रहा बल्कि यह सिलसिला लगातार चल रहा है। बाटला हाउस प्रकरण याद किजिए दग्विजय सिंह इस घटना मे मारे गए आतंकी के घर जा कर आंसू पोछते है और यह जताना चाहते है कि इस घटना में शहीद पुलिस इंस्पेक्टर आतंकी था।

कांग्रेस के अल्पसंख्यक मामले के मंत्री ए.आर. अंतुले का संसद में बयान आता है हिंदु आतंकवाद पर और फिर कांग्रेस के वर्तमान गृहमंत्री भी हिंदु आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते है। हद तो तब हो जाती है जब कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गांधी भी इसी भाषा में बोलते हुए सिम्मी और संध को एक ही तराजू में रख देते है।
और तो और कांग्रेस के एक कश्मीर मंत्री ने यह कह दिया कि कश्मीर को अलग कर देना चाहिए।



इन सब बातों पर गंभीरता से गौर करें और देखें की पाकिस्तान या फिर आतंकी संगठन इसको किस रूप में पेश करेगा। इस सारे प्रकरण को मिलाकर पाकिस्तान यह कह रहा है कि आतंकी देश मैं नहीं भारत है। आतंकी संगठन अपने जेहादियों को यह समझाने में सफल होगें की आतंकवाद भारत के हिंदू संगठन फैला रहें है।



सच में, कांग्रेस इस राजनीति में पाकिस्तान के साथ खड़ी दिखती है। अब जब कि विकिलिक्स के खुलासे में यह बात साफ हो गई मुंबई हमले का लाभ कांग्रेस लेना चाहती थी तब कहीं यह तो नहीं की कांग्रेस पाकिस्तान के साथ मिली हुई है। विकिलिक्स के खुलासे में तत्कालिन राजदूत डेविड मलफोर्ड ने अमेरिका को भेजे अपनी रिर्पोट में कहा कि कांग्रेस मुंबई हमले का लाभ लेना चाहती है और इसके लिए कुछ संदिग्ध मुस्लिम नेताओं को चुना गया है जो मुस्लमानों के बीच जाकर इस आग को जिंदा रखने का काम करेगा।




अब एक बात ही कहनी बाकी है वह यह कि कांग्रेस के किसी नेता के मुंह से निकले कि मुंबई हमला पाकिस्तान प्रायोजित नहीं हिंदु संगठन प्रायोजित है और शांति के प्रतीक इस देश का बंटाधार हो जाए।













11 दिसंबर 2010

नीतीश कुमार ने विधायक फंड खत्म करने का लिया ऐतिहासिक फैसला।

सत्ता में दुसरी बार उम्मीद से ज्यादा बहुमत से आने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री को जहॉ लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गई वहीं भ्रष्टाचार पर अर्जून की तरह मछली की ऑख पर निशाना साधते हुए नीतीश कुमार ने आज विधायक फंड को खत्म करने की पहल कर एक एंेतिहासिक फैसला लिया है। विधायक फंड को भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहा जाय तो यह अतिशयाक्ति नहीं होगी। विधायक फंड कई मायनों जन सारोकार की राजनीतिक धार को कुंद तो करती ही थी साथ ही साथ इसमें व्यापक तौर पर भ्रष्टाचार भी होता था। विधायक के क्षेत्र में विकास के लिए प्रतिवर्ष 1 करोड़ की राशि विकास मद में दी जाती थी। जिसका कोई सार्थक उपयोग नहीं होता था। अगर कहा जाय तो इसकी उपयोगिता शून्य प्रतिशत थी। शून्य प्रतिशत इस मायने में की इस मद से जो भी विकास का कार्य किया जाता था। उसका अस्तित्व एक साल होती थी। कुछ उदाहरण मैं दे सकता हॅू। विधायक मद से गॉव-गॉव चापाकल गड़े गये जिसकी सरकारी लागत 60000 होती थी पर इसमें विधायक जी का कमीशन 20 प्रतिशत अधिकारी का कमीशन 20 से 25 प्रतिशत तथा जो ठेकेदार काम कराया उसका कमीशन 15 से 20 प्रतिशत, अब वचा क्या? शेष राशि से जो चापाकल गाड़े गये वह एक माह भी प्यासों को पानी नहीं पिला सका।

एक और उदाहरण बरबीघा विधान सभा का। पिछले सत्र में यहॉ से पटना के जानेमाने न्यूरों सर्जन डा0 आरकृआर. कनौजीया विधायक बने। विधायक फंड के बार्बादी का नमूना यह कि विधायक जी ने 50 प्रतिशत कमीशन पर विधालयों में बिना राय जानें 50 लाख मुल्य की पुस्तक भेजवा दी। प्रभात प्रकाशन से खरीदी गई इन पुस्तकों में बच्चों के उपयोगिता लायका शायद ही किताब हो और आलम यह किताब विधालयों के स्टोर रूम में स़ड़ रहा है।
नीतीश कुमार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का दाबा करते हुए जनता से वोट की अपील और इस दिशा में उनके द्वारा उठाया गया यह कदम स्वागत योगय और ऐतिहासिक है।
नीतीश कुमार अपनी सभाओं में कहा करते है कि अब बिहार जो पहले करता है देश उसका अनुकरण करता है। आज विधायक फंड खत्म करने की पहल कर एक बार फिर नीतीश कुमार देश के सामने इसका अनुकरण करने का बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

10 दिसंबर 2010

गजल

कहीं आग नहीं, फिर भी धुआं क्यूं है।
तन्हाई के सफर में भी कारवां क्यूं है।

कभी तो खामोशी की जुवां को समझो साथी,
क्यों पूछते हो, यह अपनों के दरम्यां क्यूं है।

दुनियादार तुम भी नहीं हो मेरी तरह शायद,
तभी तो कहते हो कि जुल्म की इम्तहां क्यूं है।

यह नासमझी नहीं तो और क्या है,
कि जिस चमन में माली नहीं, और पूछते हो यह विरां क्यूं है।

शीशा-ऐ-दिल से दिल्लगी है उनकी फितरत,
गाफील तुम, पूछते हो संगदिल बेवफा क्यूं है।

इस काली अंधेरी रात में साथी चराग बन,
शीश-महलों को देख डोलता तेरा भी इमां क्यूं है।

कभी तो अपनी गुस्ताखियां देखों साथी,
की अब बन्दे भी यहॉ खुदा क्यूं है।





मैं चोर हुं...


                                          ईख की चोरी करने का अपना ही मजा है.

गजल




कहीं आग नहीं, फिर भी धुआं क्यूं है।
तन्हाई के सफर में भी कारवां क्यूं है।

कभी तो खामोशी की जुवां को समझो साथी,
क्यों पूछते हो, यह अपनों के दरम्यां क्यूं है।

दुनियादार तुम भी नहीं हो मेरी तरह शायद,
तभी तो कहते हो कि जुल्म की इम्तहां क्यूं है।

यह नासमझी नहीं तो और क्या है,
कि जिस चमन में माली नहीं, और पूछते हो यह विरां क्यूं है।

शीशा-ऐ-दिल से दिल्लगी है उनकी फितरत,
गाफील तुम, पूछते हो संगदिल बेवफा क्यूं है।

इस काली अंधेरी रात में साथी चराग बन,
शीश-महलों को देख डोलता तेरा भी इमां क्यूं है।

कभी तो अपनी गुस्ताखियां देखों साथी,
की अब बन्दे भी यहॉ खुदा क्यूं है।






06 दिसंबर 2010

बाबा साहेब का दिवाना- जूता पॉलीस कर गरीबों की करता है मदद।


जज्बा हो तो मजबूरियां बाधा नहीं होती है और ऐसी ही कर दिखाया है विकलंाग विनोद दास ने। बाबा साहेब का दिवाना विनोद दास बंजारों की जिंदगी जीता है। रहने को घर नहीं सोने को विस्तर नहीं अपना खुदा है रखबाला। विनोद दास रेलवे पलेटफॉर्म पर सोता है और जो मिल जाय वही खा लेता है।

विनोद दास पर उसकी जज्बा यह है कि गरीबों को ठंढ से बचाने के लिए आज  बाबा साहेब की  जयंती के अवसर पर कंबल बांटे। विनोद दास को कान से सुनाई नहीं देता है पर वह गरीबो की सेवा में हमेशा  तत्पर रहता है और भिक्षाटन कर पैसे जमा करता रहा है और गरीबों की मदद करता है। बाबा साहेब का दिवाना विनोद दास उनकी प्रतिमा को साफ सुथर रखने के लिए हमेशा  प्रयास करता रहता है।
विनोद दास गरीबों की सेवा का जज्बा अपने अंदर रखते है और जब पैसे की कमी हो जाती है तब वे दिल्ली जा कर जुता पॉलीस करते है और पैसे जमा कर गरीबों के बीच कभी कंबल तो कभी किताब का वितरण करते है।
आज इसी सिलसिले में संविधान निर्माता डा0 भीमराव अम्बेदकर की 54वीं निर्वाण दिवस मनाया गया। इस मौके पर चॉदनी चौक स्थित बाबा साहेब की प्रतिमा पर षेखपुरा पुलिस मेंस एसोशिएशनन के अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह ने मुख्य अतिथि के तौर पर मार्ल्यापण कर पर निर्वाण दिवस मनाया। निर्वाण दिवस के अवसर पर ड0 बी.आर. अम्बेदकर सामाजिक न्याय अधिकारिता दलित युवा परिषद के अध्यक्ष विनोद कुमार दास के द्वारा बाबा साहेब के निर्वाण दिवस के अवसर पर 22 निःसहाय गरीबों के बीच कम्बल का वितरण किया।





आपके विचार मेरे लिये मर्गदर्शक का काम करते है, अत: अपने अमुल्य टिप्प्णी से मेरा मर्गदर्शन करें....

05 दिसंबर 2010

सुबह सुबह एक मगही कविता ....(नेतवा सब भरमाबो है )

अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है.
गली गली जे दारू बेचे, ओकरे खूब जीताबो है.

पहले हलथिन रंगबाज
फिर कहलैलथिन ठेकेदार
अब हो गेलथिन एमएलए
जनसेवका के सब हंसी उडाबो है।
अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है.


सूट बूट है उजर बगबग
स्कारपीयों  करो है जगमग
टूटल साईकिल से ई लगदग
कहां से, कोय नै ई बतावो है।
अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है.



अनपढ़ हो गेलइ हे मास्टर
गोबरठोकनी हो गेलइ हे सिस्टर
बड़का बाप के बेटा हे डागडर
फर्जी डिग्री के फेरा में
ग्रेजुएट भैंस चराबो है।
अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है


कभी मण्डल
कभी कमण्डल
कभी राम और
कभी रहीम
आग लगाके नेतवन सब
घर बैठल मौज उड़ावो है।
अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है


की कुशासन
की सुशासन
गरीबन झोपड़ी नै राशन
चपरासी से अफसर तक
सभे महल बनाबो है।
अब तो नेतवा सब जनता के देखा खूब भरमाबो है



लोकतन्त्र में
कागवंश के
राजहंश सब
बिरदावली अब गावो है
चौथोखंभा भी रंगले सीयरा संग 
हुआ हुआ चिल्लाबो है
हुआ हुआ चिल्लावो है..........

02 दिसंबर 2010

औरत का अस्तित्व कहां..

भोर के धुंधलके में ही
बासी मुंह वह जाती है खेत
साथ में होते है
भूखे, प्यासे, नंग-धडंग बच्चे

हाथ में हंसुआ ले काटती है धान
तभी भूख से बिलखता है ‘‘आरी’’ पर लेटा बेटा
और वह मड़ियल सा सूखी छाती बच्चे के मुंह से लगा देती है
उधर मालिक की भूखी निगाह भी इधर ही है।

भावशुन्य चेहरे से देखती है वह
उगते सूरज की ओर
न  स्वप्न
न अभिप्सा।

चिलचिलाती धूप में वह बांध कर बोझा लाती है खलिहान
और फिर
खेत से खलिहान तक
कई जोड़ी आंखे टटोलती है
उसकी देह
वह अंदर अंदर तिलमिलाती है
निगोड़ी पेट नहीं होती तो कितना अच्छा होता।

शाम ढले आती है अपनी झोपड़ी
अब चुल्हा चौका भी करना होगा
अपनी भूख तो सह लेगी पर बच्चों का क्या।


नशे में धुत्त पति गालिंयां देता आया है
थाली परोस उससे खाने की मिन्नत करती है।

थका शरीर अब सो जाना चाहता है
अभी कहां,
एक बार फिर जलेगी वह
मर्दाने की कामाग्नि में।

आज फिर आंखों में ही काट दी पूरी रात
तलाशती रही अपना अस्तित्व।

दूर तक निकल गई
कहीं कुछ नजर नहीं आया
कहीं बेटी मिली
कहीं बहन
कहीं पत्नी मिली
कहीं मां
औरत का अपना अस्तित्व कहां....





तस्वीर- गुगल से साभार

चौथाखंभा: वर्तमान समर के सदंर्भ में

चौथाखंभा: वर्तमान समर के सदंर्भ में: "समर भूमि मेंसत्य की पराकाष्ठाकर्ण की परिणति की पुर्नावृति होगी।औरअसत्य की पराकाष्ठाबनाएगा `दुर्योधन´-कालखण्डों का खलनायक।शेषकृष्ण की तरहसत्य..."

01 दिसंबर 2010