25 फ़रवरी 2010

किसानों के लिए बने बजट. मंहगाई से भी कोई खुश है!

गांव और किसानों के लिए कभी भारत का बजट बनेगा? कहने को तो कहते है कि भारत कृषि प्रधान देश है पर यहां बजट में प्रधानता हमेशा से बड़े व्यापारियों को दिया जाता है। कोई आवज उठाऐगा? गांव और किसानों की बदहाली आज भी चरम पर है बात सिर्फ लिखने की नहीं है, मैं इससे रोज रूबरू होता हूं। किसानों की हालत का जायजा सरकारी आंकड़ों के हिसाब से चाहे जो हो पर जमीनी सच्चाई कुछ और है। किसानों को मिलने वाला किसान के्रडिट कार्ड का ऋण वास्तविक किसानों को आज भी नहीं मिल रहा है। अरबों की राशि कृषि ऋण का माफ हुआ पर वह ऋण किसानों का था ही नहीं। वह दलालों और तेज तर्रार लोगों की झोली में चला गया। उर्वरक की कालाबाजारी जारी है। उर्वरक किसानों को 30 से 60 प्रतिशत मंहगे मिलते है। सुखा राहत के तौर पर किसानों के लिए सरकार के  द्वारा डीजल अनुदान दिया गया पर यह भी किसान के बजाय मुखीया और पंचायत सेवक की झोली में चला गया। किसान आज भी अपने खेतों में उपजाए गए अनाज का वास्तविक मुल्य नहीं ले पाते। किसानों के अनाज खरीदने के लिए एफसीआई का गोदाम है पर गोदाम में किसान कभी भी अनाज नहीं बेच पाते। वहां भी व्यापारियों को ही प्राथमिकता दी जाती है और जितना अनाज खरीदा जाता है वह फर्जी किसानों के नाम पर और सरकार के अनुदान को अफसर और व्यापारी मिलकर अपनी झोली मे रख लेते है। 
       मंहगाई को लेकर आज भले हाय तौबा हो रही है पर इससे किसानों का भला भी हो सकता है । वस्र्ते किसानों को अनाज का वास्तबिक मुल्य मिल जाए। किसानों को अनाज कम किमत पर बेचनी पड़ती है ताकि उसकी अगली फसल लगायी जा सके और वही अनाज व्यापारियों के गोदामों में जाने के बाद मंहगे हो जाते है। आज जब  किसानों के खेत में आलू उपज रही है तो उसकी कीमत 18 रू0 प्रति पांच किलो है पर आज से एक माह पूर्व यही  आलू 18 रू0 प्रति एक किलों क्यों बिका। मंहगाई की बजह से कहीं के किसानों में खुशहाली भी। इस साल जिन किसानों ने ईख की खेती की उनको भरपूर मुनाफा हुआ और पांच रू0 प्रति किलो बिकने वाला मिठ्ठा किसानों ने 40 रू0 प्रतिकिलो बेचा। इन किसानों के बेटी की शादी इस साल धूमधाम से हो रही है। 
सवाल कई है पर सबसे बड़ा सवाल रही कि क्या किसानों के हित की बात करने वाला आज कोई नहीं है। वोट बैंक राजनीति को लेकर धर्म और जाति के आधार पर नीतियां बनायी जाती है पर किसान से बड़ा वोट बैंक कौन है।








1 टिप्पणी:

  1. किसानों की भी जातियाँ हैं...उसी से काम चल जा रहा है इनका..इसलिए उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं जा रहा है.

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