19 फ़रवरी 2010

मुसहर के बच्चे भी पढ़ें, प्रयास कर रहा है एक किशोर

छोटे प्रयास से भी समाज में एक सार्थक बदलाव लाया जा सकता है वशर्ते सही मंशा के साथ साथ चनात्मकता और लगन हो। समाज को कुछ देने की एक छोटी सी कोशिश दिख गई एक दलित वस्ती में जहां एक मानदेय पर नियुक्त टोला सेवक लगन, प्यार और परिश्रम से बच्चों को पढ़ता है। यह जगह है बरबीघा प्रखण्ड का कुतुचक मुसहरी। यहां कोई पदाधिकारी आना भी पसन्द नहीं करेगें क्योंकि यहां एक ऐसा विद्यालय है जहां बच्चों गन्दे, मैले-कुचैले कपड़े और नंग-धड़ग पढ़ना लिखना सीख रहे हैं। यहां महादलितों के बच्चो को पढ़ाने या यूं कहें के पढ़ाई के प्रति महादलितों के बच्चों को जगरूक करने का सार्थक और सकारात्मक पहल की जा रही है। एक तरफ नगर पंचायत के डीएवी मध्य विद्यालय में 16 शिक्षक है तथा पांच कमरे में यहां कक्षा आठ तक पढ़ाई होती पर कभी भी इस विद्यालय में सभी कक्षाओं में शिक्षक नज़र नहीं आते। ऐसा ही नजारा दिखा गुरूवार जब विद्यालय के महज एक कक्षा में शिक्षक थे बाकि कक्षाओं में बच्चे हंगांमा करते दिखे तो दूसरी तरफ कुतुचक मुसहर टोली के उत्थान केन्द्र में करीब दो दर्जन के आस पास बच्चों को नामांकन है और यहां शिक्षण का कार्य करते है शैलेन्द्र मांझी जो इसी गांव का एक किशोर है। शैलेन्द्र मांझी रोज बच्चों को घरों से निकाल कर उसे खुले आसमान के नीचे फटे पुराने बेरों पर बिठाता है और बड़े प्यार से बच्चों को पढ़ता है। शैलेन्द्र मांझी के द्वारा यह काम प्रति दिन नियमित रूप से किया जाता है और इसी का परिणाम है कि दो दर्जन के आस पास बच्चे यहां बैठकर पढ़ना लिखना सीखते है। किसी बच्चें के पास सीलेट नहीं है तो किसी के पास किताब नहीं, पर फिर भी अभाव में ही यह काम किया जा रहा है। बच्चों में भी पढ़ने की ललक यहां देखी जाती है। इस उत्थान केन्द्र पर जाने के बाद सभी बच्चे पहले सहम जाते है और उन्हें लगता है कि पता नहीं कौन जांचने वाला आ गया और तभी आस पास के घरों से महिलाऐं निकल आती है तथा बिना पूछे ही सफाई देने लगती है कि यहां रोज पढ़ाई होती है और बच्चे पढ़ना लिखना सीख रहे है। महिलाओं को लगता है कि पता नहीं कोई स्कूल बन्द कराने वाला न आ जायें। मुसहर जाति की इन महिलाओं को भी लगता है कि उनका भी बच्चा पढ़े और इसीलिए उनमें भी एक ललक नज़र आती है। खास बात यह कि शैलेन्द्र मांझी इस विद्यालय के बारे में कुछ बता भी नहीं पाता पर उसी हैण्डराइटींग देख दंग रह जाना पड़ता है साफ और स्पष्ट। वह अपने मुसहर समाज में एक मात्र पढ़ा लिखा लड़का है और चाहता है कि उसका भी समाज आगे बढ़े और इसी को लेकर वह एक छोटा सा प्रयास कर रहा है सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से। सर्वशिक्षा अभियान के तहत भले ही लोग रूपयों का बारा न्यारा करने में लगे हो पर कहीं कोई शैलेन्द्र मांझी है जो इस अंधेरे में भी चिराग जला रहा है और किशोर शैलेन्द्र मांझी उन शिक्षको को लजा देने के लिए काफी है जिन्हें सरकार के द्वारा 20000 रू0 वेतन तो दिया जाता है पर वह कभी कक्षा में पढ़ाई कराते नज़र नहीं आते।

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