31 जनवरी 2010

ऐतिहासिक गौशाला हुआ विरान

कभी ऐतिहासीक रहा यह गौशाला आज विरान हो गया। इस गौशाले के सभी जानवार या
तो मर गए या फिर इन्हें भुखमरी से बचाने के लिए शेखपुरा स्थित गौशाला भेज
दिया गया। इस संस्था से जुड़े लोग कहते है कि अब पहले जमाने वाले आदमी ही
नहीं बचे। पहले लोग अपनी मर्जी से दान देकर गौशाला चलाते थे आज तो इसकी
संपत्ती को भी लोग हड़पे हुए हैं।
इस गौशाला के पास अपनी एक एकड़ के आस-पास जमीन है तथा जानवरों के पानी
पीने तथा स्नान इत्यादि के लिए एक तलाब भी बाजार के लोगों ने करवाया था
जिसमें आज भी मछली पालन का काम किया जाता है। जनवरों के हरे चारे के लिए
भी लोेेगों ने खेत दान में दिया जो आज बंजर रहता है। लोग बताते है कि कुछ
वर्ष पूर्व कार्तिक महीने में तीन दिनों का भव्य मेला का आयोजन किया जाता
था। मेले में जनवरों को सजा कर बाजार का भ्रमण कराया जाता था।
आज भी गौशाला के पास अपना भवन है जिसमें जानवर रह सकते है पर पूरी तरह
से बाजार से मिलने वाले वृति तथा जनसहयोेग पर टिका हुआ गौशाला घीरे-घीरे
कब खत्म हो गया लोगों को पता भी नहीं चला। लोग बताते है कि व्यावसायियों
के द्वारा गौशाला के नाम पर वृति तो कटी जाती थी पर वह गौशाला न पहुंच कर
उनकी जेब में ही रह जाता था। और गांव से पूर्व में जनवरों का चारा
इत्यादि का इन्तजाम दान से हो जाती थी पर आज कोई भी इसमें दान देना नहीं
चाहता।
लोेग बताते हैं की गौशाला के खत्म होने का एक प्रमुख कारण यह भी रहा कि
सामाजिक कार्य में भी पैर खींचने की मानवी प्रवृति से उब समाजिक
कार्यकर्ता रामु छापड़िया ने इस कमिटि से इस्तीफा दे दिया। तात्कालिन
अनुमण्डलाधिकारी प्रभाकर झा ने बैठक बुला कर नई कमिटि का गठन कर दिया तथा
व्यावसाईयो को वृति देने का काड़ा निर्देश दिया। बाद के दिनों में उनका
स्थानांनतरण हो गया और नई कमिटि शिथिल हो गई। लोग बताते है कि गौशाला के
नाम पर वृति तो काटी जाती थी पर वह गौशाला के जानवरों तक नहीं पहुंच पाता
था। कमिटि के लोग एक भी बार गौशाला की ओर रूख नहीं किया और उधर भुख से
जानवर मरते रहे और सेठजी की तिजोरी भरती रही। बताया जाता है इस कमिटि में
सभी व्यापारी वर्ग के लोगों को रखा गया ताकि वे वृति के रूप जानवरों के
खर्चों का जुगाड़ कर सकेगें। पर ऐसा नहीं हुआ और व्यापारी वर्ग के लोेग
अपनी दुकानों में व्यस्त रहे।
आज भी गौशाला के नाम पर वृति व्यापारियों के द्वारा काटी जा रही है पर
वह व्यापारियों के जेब में ही रह जाती है। गौशाला से जानवर के चले जाने
के बाद भी कमिटि ने अपना इस्तीफा नहीं दिया है और न ही वे किसी प्रकार का
देख भाल कर रहें है। संस्था के लोगों ने बताया कि गौशाला से अब उन्हें
कोई लेना-देना नहीं है न ही कोई गौशाला के नाम पर वृति काट सकता है। अगर
ऐसा हो रहा है तो पुलिस उसपर कारवाई करे।
गौशाला बन्द होने पर किसानों को वृति नहीं देना है इस बात कि ना तो
विधिवत धोसण कि गई नहीं किसी प्रकार का प्रचार कराया गया इस वजह से भोले
भाले ग्रामीणों से वृति काट लिया जाता है।
गौशाला के इस तरह बदहाल होता देख दबंग लोग अब इसपर अपना कब्जा जमाना
चाहते है और इसके लिए अभी से प्रयास किया जाने लगा।
बताया जाता है कि समाचक में गौशाला के नाम से मेन रोड पर एक दुकान के
लायक जमीन है जिसे लोगों ने कब्जा कर लिया। इस तरफ कोई भी ध्यान नहीं दे
रहा। कमिटि भी इसके लिए हमेशा उदासीन रही।
बिहार के उपमुख्य मन्त्री प्रति दिन गौशाले की उत्थान की बात कह रहे है
पर उनकी कथनी और करनी में कितनी समानता है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा
सकता है कि कई साल तक लगातार संपर्क किए जाने पर भी उनकी ओर से कोई
ध्यान नहीं दिया गया और अन्तत: अजीज आकर लोगों ने गौशाल के जानवरों को
शेखपुरा पहुंचा दिया था।
आज धिरे धिरे लोग गौशाला कि जमीन पर अपना कब्जा बनाने का काम शुरू कर
दिया है और इस ओर कोई भी दिया जाता है।

1 टिप्पणी:

  1. सही और स्वार्थहीन प्रबन्धन नहीं होने पर जो होता है, वही यहाँ हुआ है। सामाजिक एवं सामूहिक कार्यों में कमी किसी भी समाज के लिये शुभ लक्षण नहीं है।

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